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वीर सेवा मन्दिर के यशस्वी विद्वान् पं० श्री बालचन्द्र
शास्त्री वि. सं. १९६२-२०४६ __ श्री पं० बालचन्द्रजी शास्त्री जैन समाज के गिने-चुने जैन विद्या-मनीषियों में अग्रगण्य रहे। उन्होंने वाराणसी में अध्ययन कर जैन विद्याओं के अध्यापन, अध्ययन और अनुसंधान को अपना कार्यक्षेत्र चुना। इसमें वे जीवन भर लगे रहे और अपना अमूल्य योगदान कर जैनविद्याओं के इतिहास में अपना नाम अमर कर गए। उनके द्वारा लिखित, सम्पादित एवं अनुवादित लगभग दो दर्जन ग्रथ इसके प्रमाण है । इनमें 'जैन लक्षणावली' नामक अकेला एक ग्रंथ ही उनकी कोतिपताका को फहराता रहेगा। उन्होंने वीर सेवा मन्दिर में अत्यन्त निष्ठापूर्वक कार्य किया और इसके कार्यक्षेत्रको समृद्ध किया। उन्होने समाज मे पंडित की पंगुस्थिति का मानसिक अनभव भी किया। यही कारण है कि उन्होंने अपनी किसी भी पौध को इस क्षेत्र में नही आने दिया। उनका उदाहरण समाज में 'पंडित परम्परा' को संवद्धित करने की दिशा मे सोचने के लिए एक प्रेरक प्रसंग है।
पंडित जी के असामयिक निधन को वीर सेवा मंदिर की कार्यकारिणी ने समाज की अपुरणीयक्षति माना और अपनी बैठक में पडितजी के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए दिवंगत आत्मा की सद्गति एवं शान्ति के लिए प्रार्थना और उनके कुटुम्बियों के प्रति संवेदना व्यक्त की।
सुभाष जैन महासचिव
वीर सेवा मन्दिर
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