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अग्रिम चेतावनी : सावधान ! मै नेता नहीं, पर बिन्ती तो कर ही सकता हूं कि -"जिनका नायक नहीं होता वे नष्ट हो जाते हैं और जिनके कई नायक होते है वे भी नष्ट हो जाते है।" आज धर्म के विषय में जैन के अधिसंख्य श्रावक और मुनि इसो दशा से गुजर रहे है प्रायः चारी संघ निरकुश है, मनमानी कर रहे हैं और कथित नेतागण मौन है। भला, ये कैसा नेतृत्व ? जिसमें बाड़ हो खेत को खाये जा रहो हो ? हम समझे है कि यह सब एक सबल-नेतत्व के अभाव और निर्बल-बहुनेतृत्व के सद्भाव का हो परिणाम है।
ऐसे नाजुक दौर में सब नेता पंथ-गत नेतृत्व को किनारे रख, मिल बैठे तथा सबल ओर निष्पक्ष एक धार्मिक नेतत्व का निश्चय करे तथा उस नेतृत्व में 'धर्म-मार्ग-रक्षा' को समस्या को सुलझाये-शिथिताचारियो में सुधार लाएँ। अन्यथा, वह दिन दूर नहीं जब दबी जुबान में कानाफूसी करने वाले खुलकर कहने को मजबूर होंगे कि ये और इनके गुरू तथा इनका धर्म सभी ढोंग है। और तब श्रावकों और दि० जैन मुनियो की चर्चा केवल प्राचीन-शास्त्रों तक ही सीमित रह जायगो। कहीं ऐसा न हो कि हम हाथ मलते ही रह जॉय?
__ सुभाष जैन महासचिव, वीर सेवा मन्दिर
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