Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 78
________________ कनककति नाम के विभिन्न गुरु एवं मुनि - इतिहास मनीषी, विद्यावारिधि स्व० डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन शिलालेख मग्रहों, प्रशस्ति संग्रहो और इतिहासपुस्तको में अब तक कनककीर्ति नाम के जिन १० गुरुप्रो का उल्लेख मिल सका है, उनका यथासम्भव कालक्रमानुसार संक्षिप्त विवरण निम्नवत है : १. एपिग्राफिया इण्डिका, खण्ड दस, पृ० १४७ तथा पी० बी० देसाई कृत 'जैनिज्म इन साउथ इण्डिया एण्ड सम जैन एपीग्राफ्स, (शोलापुर, १६५७) मं पृ० २२ पर वह कनककीर्ति देव, जो गग-नरेशों के प्रसिद्ध विद्वान एव धर्मात्मा जैन महासेनापति श्री विजय के समाधिमरण स्मारक लेख के अनुसार उक्त राजपुरुष के गुरु थे ( समय लगभग ८०० ई० ) । २. पेनगोल्ड के एक जैन व्यापारी के निषिधि लेख मे उसके गुरु के रूप में उल्लिखित कनककीर्ति देव । (जैन शिलालेख संग्रह, खण्ड चार, लेख स० ५६३) । ३. 'कषाय-जय भावना' अपरनाम 'कषाय-जय चत्वा रिशत' (संस्कृत पद्य) के रचयिता कनककीर्ति मुनि ( समय लगभग १२ वी शती ई० ) | ( प्रशस्ति संग्रह, आरा, प्रशस्ति स० १७१-१७३) । ४. भकुर (गुलबर्ग, मैसूर) के जिनमंदिर की त्रिमूर्ति के पादपीठ पर उसके प्रतिष्ठापक रूप मे अकित मुनि कनक् कीर्ति ( समय लगभग १३वी शती ई०) । (जैन शिलालेख संग्रह खण्ड पाँच लेख १५८ ) । ५. महाकवि रईधू के 'सन्मति जिनचरित' (समय लगभग १४४० ई० ) मे उल्लिखित सिद्धसेन के शिष्य कनककनि मुनि । ( प्रशस्ति सग्रह, वीर सेवा मंदिर, भाग दो, ३५ ) ६. 'अष्टकोद्यापन' तथा 'नदीश्वर-पति- जयमाल ' (संस्कृत) के कर्ता कनककीति । (प्रशस्ति स० १७३, प्रशस्ति संग्रह, आरा) ७. ईडर के भट्टारक कनककीर्ति, जिन्होने १८७५ ई० में कुंथलगिरि पर देशभूषण कुलभूषण मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था । (प० नाथूराम प्रेमी कृत 'जैन साहित्य और इतिहास', द्वितीय सस्करण, पु० २१२, डा० कैलाशचंद जैन कृत 'जैनिज्म इन राजस्थान' (शोलापुर, १६६३) पृ० ७७ ) ८. पावागढ़ के प्राचीन जिन मन्दिरो का १८८० ई० में जीर्णोद्धार कराने वाले भट्टारक कनककीति । यह सम्भवतया ऊपर क्रमाक ( 3 ) पर उल्लिखित भ० कनककीर्ति में अभिन्न है। वहां की पाच प्रतिमाओ पर उनका नाम प्रतिष्ठापक रूप से अंकित है । (प्रेमी जो कृत उपरोक्त 'जैन साहित्य और इतिहास' मे पृ० २२० ) ६. नागौर के भट्टारक क्षेमेन्द्र कीर्ति के आदेश से १८८२ ई० मे प० शिवजी लाल द्वारा रचित 'गजपथ-मडल विधान' में जिन पुरातन मुनियों को श्रध्ये प्रदान किया गया है, उनमे एक कनककीति भी है। (प्रेमी जी कृत उपरोक्त 'जैन साहित्य और इतिहास' मे १०१६८ ) १०. मूलनन्दिसंघ के नागौर पट्ट के भ० क्षेमेन्द्रकीर्ति (१८८२-८६ ई०) के प्रशिष्य, मुनीन्द्रकीनि के शिष्य और देवेन्द्रकीति के गुरु कनककीर्ति ( समय लगभग १९२५ ई० ) । टिप्पणी- उपर्युक्त लेख स्व० डाक्टर साहब द्वारा सकलित 'ऐतिहासिक व्यक्तिकोश' के अप्रकाशित अश की पान्डुलिपि से व्यवस्थित किया गया है । -- ( श्री रमाकन्त जैन के सौजन्य से )

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