Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 79
________________ मिथ्यात्व ही मिथ्यात्व के बंध का कारण ले० पं० मुन्नालाल जैन, 'प्रभाकर' 'अकिंचित्कर' पुस्तक मे मिथ्यात्व के बघ का कारण बड़ा छपा है, उसमे बधने वाली कम प्रतियो के पृथक मिथ्यात्व को न मानकर अनतानुवंधी कषाय को मिथ्यात्व पृथक नाम तथा उनके बध के कारण बतलाये है, जो के बंध का कारण कहा था, जिस पर मैंने मिथ्यात्व के आगम में भी अनेक जगह मिलते है तथा हमारे लेख में बध का कारण मिथ्यात्व ही है, ऐसा अपने लेख में लिखा भी पहले दिये जा चके है। अब जिन विन्दुओ पर विचार था, जो अनेकान्त वर्ष ४१ किरण ३ मे छपा था। उसमे करना है, वे निम्न प्रकार है-(१) जब यह अभव्य जीव लिखा था कि मिथ्यात्व आदि १६ प्रकृतियों के बध का मिथ्यात्व गुणस्थान मे मिथ्यात्व का उदय रहते हुए भी कारण मिथ्यात्व ही है और आगम के प्रमाण भी दिये थे व्यवहार सम्यग्दर्शन, व्यवहार सम्यग्ज्ञान पूर्वक महाव्रतो तथा आगम के अनुमार १२० प्रकृतियो के बंध के कारण मे प्रतिरूप आचरण करने लगता है तब उसके १६ भी पृथक-पृथक बतलाये थे, उमके पश्चात् जैन-सदेश १६ प्रकृतियो का बंध नही होता, इसका प्रमाण समयसार की जनवरी, १९८६ मे स्व०प० कन्छेदीलाल जी जैन ने गाथा २७५ दी है ऐसा वीरवाणी मे १६० पृष्ठ पर कहा अपने मम्पादकीय नोट में लिखा था कि 'आचार्य श्री ने है। जब कि समयसार की गाथा २७५ मे जो कहा है वह अपना मतव्य स्पष्ट किया है कि "मिथ्या व प्रादि पांच उससे विपरीत है। समयमार की गाथा में यह कहा है--- प्रत्यय बंध के कारण है इसमें विवाद नहीं है किन्तु स्थित सद्दहदि य पत्तियदि य रोचेदि य तह पणो वि फासेदि । एव अनुभाग बध कषाय से होता है।' धम्म भोगणिमित्त ण दुमो कम्मक्खय णिमित्त ॥' २७६ यह ठीक है कि स्थिति एव अनुभाग कषाय से पडता वह प्रभा जीव धर्म को श्रद्धान करता है, प्रतीति है तथा मिथ्यात्व के साथ कषाय तो रहती है और करता है, रुचि करता है और स्पर्शता है वह ससार भोग मिथ्यात्व के उदय के बिना भी कषाय रहती है किन्तु के निमित जो धर्म है, उसी को श्रद्धान आदि करता है, मिथ्यात्व के अभाव में कषाय मे ७० कोडा-कोडी मागर परन्तु कर्म क्षय होने का निमित्त रूप धर्म का श्रद्धान नहीं की स्थिति डालने की शक्ति नही है, इससे सिद्ध होता है करता। इसमे ऐसा कही नही कहा कि सम्यग्दर्शन, सम्यक्कि मिथ्यात्व प्रकृति के बंध मे मूल कारण तो मिथ्यात्व ज्ञान निश्चय तथा व्यवहार रूप दो प्रकार का है, हा, है ही इसके अतिरिक्त स्थिति और अनुभाग डालने मे भी मोक्षमार्ग प्रकाश (मुसद्दीलाल जैन चेरिटेबल ट्रस्ट से प्रका कषाय को ७० कोडा-कोडी सागर की शक्ति भी मिथ्यात्व शितY४ मा कटा है._ तितामिति के सहयोग से आयी है । जैसे अकेले एक अक का मान । रहित श्रद्धान रूप आत्मा का परिणाम सो तो निश्चय केवल एक हा हाता है आर याद उसक आग एक विन्दु सम्यक्त्व है, जाते यह सत्यार्थ सम्यक्त्व का स्वरूप है। को लगा दें, तो उसका मान एक से दश हो जाता है ऐमी सत्यार्थ सत्यार्थ ही का नाम निश्चय है। बहरि विपरीताभिनिवेश अवस्था मे मिथ्यात्व को अकिचितकर नही कहा जा रहित श्रद्धान को कारणभूत श्रद्धान सो व्यवहार सम्यक्त्व सकता । फिर यह विवाद समाप्त भी हो गया था, परन्तु है से एक ही काल विषं दोउ सम्यक्त्व पाइए है अर्थात काफी समय के बाद दूबारा उसको उठाकर विवाद खडा निश्चय का जो कारण है. वह व्यवहार होता है, अगर कर दिया गया। निश्चय नही है तो उसका कारण व्यवहार कहा से आ एक लेख वीरवाणी वर्ष ४१, अक १२-१३ में काफी गया ? इससे स्पष्ट होता है कि प्रथम गुग्गस्थान में व्यव

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