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१२, वर्ष ४२, कि०३
अनेकान्त
ण लहति बोहिलाह अवि वास सहस्सकोडोहि ॥ बहो, गाथा २४ । वही, गाथा ।
२६. वही, गाथा २५। २. जहमलम्मिविणठे दुमस्म परिवार रणत्यि परिवड्ढो। २७. अमजदं ण वन्द वच्छविहीणोवि सो गा वन्दिव्वो।
तह जिगदसण भट्टा मुलघिणट्ठा रण सिजनंति ॥ गावि देहो वंदिज्जइ राषिय कुनो गाविय जाइ संजुतो वही, गाथा १०।
को वंदवि गुणहीणो..." || २१. कल्लागा परसरण लहति जीवा विशुद्ध सम्मत्त । वही, गाथा २६-२७ ।। वही, गाथा ३३ .
२८. दसणहीणो ण वंदिव्यो। २२. वही, गाथा २६ ।
वही, गाथा २। २३. वही, गाथा १७ ।
२६ जे दसणेसुभट्टा पाए पाडन्ति दगगगध रागा। २४ ।क्क जिस्म प वीय उक्किट्ठ मावयाणतु । ते हुति लुल्लमुआ वोहि पुरण दुल्लहा तेसि ।।
अवरोठ्यागा नइय चउथं पुगग लिंग दसणे गच्छि ।। वही, गाथा १२। वही, गाथा १८
३०. जेवि पडन्ति च तसि जागान्त लज्जगारव भयेरण । २५. सह जुप्पणं वं दिठ जो मर गए णमच्छरिऊ । तेसिपि रात्थि वोही पाव अगामोन मारणाण ।।
सो सजम पडपणो रूव दट्ठग सील महियाण ।। वही, गाथा १३ ।
(प. ८ का शेषांश) का वर्णन व जैन धर्म को अधिकतम पारिभाषिक शब्दा
तिन सुख लहो अतुछ अविनाशी।" वली को एक स्थान पर सकलित करने का अनुपम प्रयत्न कृति के अन्त मे कवि ने २०१ जैन ग्रन्थो को ३६ है। इम कृति के अध्ययन के पश्चात् कोई भी विद्वान यह चिकित्सा सम्बन्धी, १३ शृगार, २६ ज्योतिष, १४ शब्दरवीकार करने में सकोच नही करेगे कि कायस्थ प्यारेलाल कानून, १६. व्याकरण, ८ महाकाव्य, ४ व्याकरण २ जैन-दर्शन के तलस्पर्शी विद्वान थे । इस कृति के लिए अन्य, इस प्रकार ३२० ग्रन्थो की सूची दी है। इस सची गमाज को उनका ऋणी होना चाहिए । प्रत्येक दोहे के के अध्ययन में यह सहज ज्ञात हो सकता है, कि कितने पूर्व उन्होंने बिषय-वस्तु को दर्शाने वाले शीर्षक वे दिये है : कितने ग्रन्थ काल कवलित हो गये। कायस्थ प्यारेलाल सम्पूर्ण कृति का सार सक्षेप में लिखना अत्यन्त कठिन जिनधर्मी की यह बहुमूल्य कृति है, यह उनके महान ज्ञान कार्य है। उदाहरण के लिए कुछ दोहे प्रस्तुत है-- और श्रम की साक्षी है। एक भाग से दूसरा, जिसका काल न होय ।
जैन साहित्यकारो मे कविवर भागचन्द जी प्रथम सोई समय सर्वज्ञ ने, कहो ज्ञान वृग जोय ।। साहित्यकार प्रतीत होते हैं, जिन्हे समकालीन कवियो ने
स्मरण किया। जिनका प्रतिबोध पाकर कायस्थ प्यारेहस्तदोय, पगदोय, सिर, मन वच काय मिलाय । लाल जिन-धर्मी हो गये, उनके गुरु कवि एव विद्वान् प्रष्ट अंगु संयुक्तकर, नमस्कार जिनराय ।। भागचन्द की प्रतिभा का सहज अनुमान किया जा सकता
चार कषाय
कोध, मान, माया अरु लोभा ।
इन जुत नीवन पाहि भोगा। एही चार कषाय विनाशी,
उनके उपलब्ध साहित्य और अनुपलब्ध साहित्य पर शोध किया जाना वर्तमान युग की अनिवार्यता है।
राहुल स्पोर्टस, गिफ्ट सेन्टर गना, (म०प्र०) ४७३..१