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८, वर्ष ४२, कि०३
अनेकान्त
कल्पित ग्रन्थ रचे स्वारथ वश,
ता भ्रमजीव उगो, प्यारेलाल का बहु सोयो,
मो जिन ध्वनि सुना जगो जिनवाणो से नह गो।"
तिनके ही प्रताप से,
नसे विध्न समुदाय, बंदो जिनवारणी विमल,
जग माता मिर मौर, तुम बिन को संसार से, तार दिये शिव ठौर ।
भागचन्द जी भाई भागचन्द पाई महाज्ञानवान विख्यात । तिनकी सगत पाय हम परखी जिन-ध्वनि बात ।। तब सम्यक सरधा मई, गई मुधा मत रीत । सधा जैन वचनान को, लगी निरन्तर प्रीत ॥ ईसागढ़ माही बसे. कायस्थ प्यारेलाल । बाल-बोध कारण निमित्त, रची नाम की माल । संवत सन् उन्नीस अरु, ऊपर सत्रह साल । भावव शित पडिमा सुदिन, बरते पंचम काल ॥
कवि कायस्थ प्यारेलाल जनवमी , अभी तक १गीत उपलब्ध हए है। गीत के मूल्यांकन के पूर्व तीन गोन दिगे जा रहे है - न छोड़ी डोरतियाँ थारे चरण की,
ये जन्म भए चरन के चेरे, हरी व्यथा जिन जनम मरण को,
न छोड़ी डोरतिया थारे चरण को, सुमरे चरण-कमल घ्यावत, पावत निधि शुभ ज्ञान चरन को,
न छोड़ी.... . जब लग चरण बसे प्यारे उरु,
___नास करो गति करम अरिन को, न छोड़ी डोरतियाँ थारे चरण की ।। "जिनवाणी से नेह लगो,
जास, उदोत, जोत, रवि ऊगत, मिथ्याति मग भगी,
कुगुरु कुदेव धर्म लखे, ये जिमि रंग पतंग लगो,
जिनवाणी से नेह लगो,
श्रावक धर्म पाले नहीं, जनी हुमा तो क्या हुआ .. . स्वाध्याय सुमरन ध्यान लग, मिल मंद मति खेले जुमा बृषभादि अमत द्वार तज, अषवारि जल खोदे कुआ, प्यारे धर्म धारे बिना, गति चार में जन्मा मुत्रा, जैनी हा तो क्या हुआ ?"
-कवि प्यारेलाल कबि प्यारेलाल द्वारा रचित गीत उनकी प्रारम्भिक माधना काल के गीत पतीत होते है। किन्तु उनकी अपनी विशिष्ट शैली है, जिम वात को वे कहना चाहते है, कमसे कम शब्दो मे बडी गफाई मे अभिव्यक्त करते है। भाषा में बुन्दे खण्डी, राजस्थानी भाषा का सम्मिश्रण है। उनके चार-पाच पक्तियो के गीत हृदय को छ लेते है। आवश्यकता है कि उनके अन्य गीतो की शोध की जाये।
नाममाला कवि कायस्थ प्यारेलाल जिनधर्मी की एकमात्र दुर्लभ कृति है।
उपलब्ध पांडुलिपि का विवरण नाम-माला
पोलिपि के पृष्ठ की ल० १ फुट १ इच ७ इच, पृष्ठ सव्या-८०, दोहो की संख्या-९८६, लेखन-काल१६१७, सवत भ,दा सुदी पचमी ।।
नाम माला जैन धर्म के मन्दर्भ में दोहो के माध्यम से अधिकतम ज्ञान देन जालो दुर्लभ कृति है। इस कृति मे श्रावकों से लकर थमणो की आचार सहिता, स्वर्ग, नरक
(शेष पृ० १२ पर)