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आचार्य कुन्दकुन्द का अप्रकाशित साहित्य
3 डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल
आचार्य कुन्दकुन्द का सबसे विरक्षण उपहार उनका भाव पाहुड, ११. मोक्ख पाहुड, १२. लिंग पाहुड, १३. साहित्य है । जो विगत दो हजार वर्षों से सर्वाधिक चचिन शील पाहुड, १४. रयणसार, १५. सिद्ध भक्ति, १६. श्रत साहित्य रहा है। उनके समयसार प्रवचनसार जैसे ग्रंथों भक्ति, १७. चारित्त भक्ति, १८. गोगि भक्ति, १६. के नाम उनके बाद होने वाले सभी आचार्यों, साधुओं, आचार्य भक्ति, २०. निर्वाण भक्ति, २१. परमेष्ठि भक्ति भट्टारकों, पंडितों, कवियों, टीकाकारो एवं स्वाध्याय २२. थोस्सामि थुदि तथा २३. मूलाचार। प्रेमियो को याद रहे हैं और यही कारण है उनका स्वा
उक्त २३ ग्रंथों के अतिरिक्त तिरूकुरल को भी कुछ ध्याय, पठन-पाठन, लेखन-लिखावन, टीकाकरण, भाषा
विद्वान आचार्य कुन्दकुन्द की रचना मानते है । करण समी कार्य अबाध गति से होते रहे और आज उनका ढेर सारा साहित्य पाण्डुलिपियो एवं छपे हुए ग्रंथो के रूप
इन ग्रंथों पर सस्कृत टीकाओ के अतिरिक्त विभिन्न मे उपलब्ध हो रहा है । उनके ग्रथों में भी समयसार सबसे
विद्वानों ने हिन्दी भाषा में भी विषद टीकाएँ लिखी हैं। उत्तम ग्रंथ माना जाता है। इसलिए समयसार का स्वा
संस्कृत टीकाओ में अमृतचन्द्र एवं जयसेन की टीकायें ध्याय प्रवचन एवं मनन चिन्तन प्रत्येक साधक के लिए
प्रकाशित हुई हैं और हिन्दी टीकाओ मे केवल पं० राजआवश्यक माना गया है यही कारण है कि स्वाध्याय प्रेमी
महत एव पं० जयचन्द छाबडा की प्रकाशित टीकायें हो अपने पापको समयसारी कहलाने में गौरव अनुभव करने ।
हमारे देखने में आई है। प० बनारसीदास का समयसार लगे। आचार्य अमतचन्द्र, आचार्य जयसेन जैसे धाकड़ नाटक यद्यपि गाथाओं का हिन्दी रूपान्तर नही है लेकिन (प्रभावशाली) आचार्यों ने उन पर टीकाएं लिखकर उनको उसका भी आधार ममयसार ही है। समयसार नाटक भी लोकप्रिय बनाने मे सर्वाधिक योग दिया । इन टीकाजी के कई संस्करणो में प्रकाशित हो चुका है लेकिन उक्त प्रका. कारण समयसार एवं प्रवचनसार पचास्तिकाय जैसे प्रथो शित टीकाओ के अतिरिक्त अभी कुछ सस्कृत एव हिन्दी का और भी प्रचार प्रसार हो गया और इन टोकाओ के टीकायें और है जिनका प्रकाशन अभी तक नही हना है आधार पर उनका धड़ल्ले से स्वाध्याय होने लगा। यही और टीकाकारों के हार्द को जानने के लिए उनका प्रकाशन नही प्रवचन कर्ताओ ने अपने आत्मा-परमात्मा, निश्चय आवश्यक है। अभी समयसार का एक सुन्दर संस्करण व्यवहार, उपादान निमित्त, भेद विज्ञान जैसे विषयो को आचार्य जयसेन की संस्कृत टीका एव आचार्य ज्ञानसागर अपने प्रवचनों को मुख्य आधार बना।
जी की हिन्दी टीका तथा आचार्य विद्यासागर जी महाराज
के हिन्दी पद्यानुवाद सहित प्रकाशित हुआ है। आचार्य कुन्दकुन्द ने यद्यपि ८४ पाहुड ग्रथों की रचना की थी लेकिन उनमें से अब तक २३ पाहुड अथ मिल सके
समयसार की संस्कृत टीकाओ मे भट्टारक शुभचन्द्र हैं जिनके नाम निम्न प्रकार हैं :
की अध्यात्म तरगिणी, भट्टारक देवेन्द्रकीति की समयसार
टीका एव नित्य विजय की कलश टीका का अभी तक १. समयसार, २. प्रवचनसार, ३. पंचास्तिकाय, प्रकाशन नही हुआ है। यद्यपि ये टीकाये अमृतचन्द्र एव ४. नियमसार, ५. वारस-अणुवेक्खा, ६. बंसण पाहुड, जयसेन की टीकाओ के स्तर की नही हैं लेकिन प्रत्येक ७. चारित्त पाहुड, ८. सुत्त पाहुड, . बोध पाहुड, १०. टीका की अपनी-अपनी विशेषता होती है और उन