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१२, वर्ष ४२,कि०२
भनेकान्त
पूर्व परम्परा से चाहे कितनी ही विपुल ज्ञानराशि अर्थात् कुन्दकुन्द मौर उनके साहित्य के सन्दर्भ में हमें क्यो न प्राप्त हो, किन्तु जब तक उसमें स्व की-निज उपर्युक्त पक्षों को प्रस्तुत करते हुए अन्त मे इतना विशेष की अनुभूति-निजानुभूति का अनुपान नही होगा, तब तक कहना चाहूंगा कि आचार्य कुन्दकुन्द के सा.ित्य में दृश्य उसको साधिकार कहना मुश्किल है। चूंकि कुन्दकुन्द के भले ही अनेक हों, किन्तु दर्शमीय एक है और वह है साहित्य मे स्वानुभूति का योग है, अतएव सर्वोत्कृष्ट है। निजात्मा। यदि कुन्दकुन्द के साहित्य में निजानुभूति का योग न होता तो उनके साहित्य के स्वाध्याय, चिन्तन और मनन से
।। जय कुन्दकुन्दाचार्य ।। मुक्ति की प्राप्ति हो सकती थी, मोक्ष-मार्ग की युक्ति की नही और मुक्ति की तो कदापि नही।
---काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी
१. द्रष्टव्य, नियमसार, गाथा ४२ को टीका। ३. नियमसार, गाथा १८६ ।
सन्दर्भ-सूची
२. नियमसार, गाथा १८५। ४. प्रवचनसार,३/३४।
५. प्रवचनसार, ३/३८ ।
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अमत-कण
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आत्मा और शरीर का सम्बन्ध अनादि काल से चला आ रहा है और यह जीव शरीर को ही आत्मा मान रहा है कि मैं ही यह हूँ। इसी भूल के कारण अनन्तानन्त * काल से संसार में भ्रमण कर रहा है। आत्मा तो अजर, अमर, अखण्ड व अविनाशी
है-रूप, रस, गध कुछ नही है-अरूपी है। एक क्षेत्रावगाही होते हुए भी अलग-२ 2 है। परम निरंजन, ज्ञाता-दृष्टा एक रूप है और स्वतंत्रद्रव्य है। हर एक आत्मा की
सत्ता निराली है, भेदविज्ञान द्वारा सर्वरागादि से अपने को जदा विचारने से स्वानुभव प्रकट होता है।
आत्म-ज्ञान चिन्तामणि रतन के समान है, सब आकुलताओं का अंत करने वाली है। आत्मा गुणों का समूह है। शुभ और अशुभ कर्मों के उदय के आने पर सावधान रहना चाहिए। शुभ के आने पर हर्ष और अशुभ के आने पर विषाद नही करना चाहिए। हर्ष और विषाद करने से नये कर्मो का बंध होता है। अपने परिणामों की हर वक्त संभाल रखनी चाहिए, ताकि नये कर्म न बंधे-स्वानुभति के समय पांचों इन्द्रियों का उपयोग नहीं होता, मन भी शान्त होता है। मन भी ज्ञान, ज्ञाता व ज्ञेय के विकल्प से रहित होकर स्वयं ज्ञानमय हो जाता है। आत्मा ज्ञाता, दृष्टा और ज्ञान-गुण का भण्डार है, स्वानुभूति के लिए तीनों समय दो-दो घरी ध्यान लगाना जरूरी है। ध्यान की सिद्धी से आत्मस्वरूप में लीनता होती है और आत्मलीनता से मुक्ति होती है।
___-शीलचन्द जैन जौहरी
११, दरियागंज, नई दिल्ली-२ Xxxkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkkxx
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