Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 42
________________ कुन्दकुन्दाचार्य 1) इतिहास मनीषी, विद्यावारिधि स्व० डा. ज्योतिप्रसाद जैन कुन्दकुन्द दिगम्बर जैन परम्परा के सर्वमहान, सर्वा- जिनवाणी की सर्वापेक्षिक श्रेष्ठता को प्रमाणित करने धिक प्रतिष्ठन एव प्रख्यात आचार्य है। महान सरस्वती सम्पूर्ण भरतक्षेत्र मे उसे प्रतिष्ठापित करने एव लोकप्रिय आन्दोलन के नेताओ में प्रमुख और सम्भवतया आद्य जैन बनाने का प्रधान श्रे। इन्हे ही दिया जाता है, जैसा कि ग्रन्थ प्रणेता है। वे सम्प्रदाय भेद के विरोधी और अवि- निम्नलिखित श्लोक से विदित होता है - भक्त मूल सघ के परम समर्थक थे, साथ ही भद्रबाहु श्रुत- वन्द्यो विभु पिन कैरिह कौण्डकुन्दः केवली की दक्षिणापथ परम्परा को ही वे महावीर के कुन्दप्रभा प्रणयि-कीतिविभूषिताशः । मूलसघ का सच वा एव एकमात्र प्रतिनिधि मानते थे और यश्चारु चारणकराम्बुज चञ्चरीकश्चके अपने समय में उसके प्रधान नेता थे। उनका महत्व उस श्रुतस्य भरतेप्रयत. प्रनिष्ठाम् ।। सर्वपचलित मगल श्लोक से ही स्पष्ट है जो समस्त धार्मिक (श्रवणबेलगोल शिलालेख सख्या ५४) एव मागलिक कार्यों की निर्विघ्न समाप्त के लिए उका उनके उत्तरवर्ती अनेक ग्रन्कार उनके ऋणी रहे है कायों के प्रारम्भ में पढ़ा जाता है-- और उनके कुछ ग्रन्थ तो परवती टीकाकारो को उपयुक्त मगल भगवान वीरो, मगल गोल मोगणी। उद्धरण प्रदान करने के लिए साक्षात कामधेनु सिद्ध हुए मगल कुन्दकुन्दाय) , जैनधर्मोस्तु मंगलम् ।। है। उनकी अधिका। विनयाँ मतवाद एव सम्प्रदायवाद इस प्रकार स्वय भगवान महावीर और उनके प्रधान से अछूती है, विशेषकर उनके समयसार' की तो दिगम्बर, गणघर गोनम स्वामी ने माथ कन्दकन्द का नाम स्मरण श्वेताम्बर, स्थानकवासी आदि विभिन्न सम्प्रदायो वाल किया जाना है। जनी ही नही बलि बहुत स अजैन भी भक्तिपूर्वक स्वाएनिमाफिया कर्णाटिका के द्वितीय खण्ड में एक श्लोक। ध्याय करते है। भौर्योत्तर एव पूर्व गु-तकालीन प्राचीन मिलता है भारत के ये सर्वमहान आत्मवादी आध्यात्मिक सन्त थे । श्रीमती वर्धमानस्य वर्धमानस्य शासने । प्रायः समस्त उत्तरकालीन अध्यात्मवादियो, निर्गुणोपासको श्री कोण्ड कुन्दनामाभू मूसिधाग्रणीःणी ।। अथवा रहस्यवादी भारतीय मन्तो के लिए कुन्दकु-द की जिगका तात्पर्य है कि श्रीमद् वर्धमान महावीर के उक्तियां ओपनिपादक साहित्य के समकक्ष ही प्रमुख वृद्धिगत धर्मशासन मे मूलसघ के अग्रणी (नेता) यी कोण्ड- आधार स्रोत रहता हो। कन्द नाम के गणी (मुनि) थे । भगवान महावीर के धर्म- आचार्य कुन्दकुन्द के जीवन से सम्बन्धित कई परम्परा शासन का वर्धमान करने वाले मूलमघ के अग्रणी इन कथाएं प्रचलित है, किन्तु व सब उनके समय से शतामुनिनायक कोण्डकुन्द का अन्बय (कुन्दकुन्दान्वय) अनेक ब्दियों पीछे गढ़ी गई प्रतीत होती है। इन पौराणिक शाखाओ प्रशाखाओ मे तार पाता हुआ देशव्यापी आख्यानो जैसी कुन्दकुन्द जीवन गाथाओ मे कितना तथ्याश हुआ। अधिकाश उत्तरकालीन दिगम्बर साधु अपने आप है यह कहना कठिन है। इन योगिराज मे अनेक चमत्कारी को कुन्दकुन्दान्वयी मान गौरवान्वित होते रहे है। दिगम्बर शक्तियों होन की भी अनुश्रुतियाँ प्रचलित है। कहा जाता आम्नाय के नन्दि आदि तीन बड़े-बड़े सघ अपनी-अपनी है कि उन्हे चारणऋद्धि प्राप्त थी जिसके द्वारा वे आकाश परम्परा को मूलत: इसी अन्वय से सम्बन्धित करते है। मार्ग से गमन कर सकते थे, उन्होंने विदेह क्षेत्र में सीमधर

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