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जरा-सोचिए ! स्वर्गीयों की झांकी : एक स्वर्गीय को कलम से-- १. स्व. श्री अर्जुनलाल सेठी :
के कारण न हो मका उनके परिवार वालो को भी तीन 'सेठी जी जिन-दर्शन किये बगैर भोजन नही करत रोज के बाद सेठी जी की मृत्यु का सवाद मिला। थे। जेल मे जिन-दर्शन की सुविधा न होने के कारण, २. स्व. ब्र० सीतल प्रसाद जी : उन्होने भोजन का त्याग कर दिया और उस पर वे इतने 'न जाने ब्रह्मचारी जी किस धातु के बने हुए थे कि बृढ़ रहे कि सत्तर रोज तक निराहार रहे। अन्त मे
थकान और भूख प्यास का आभास तक उनके चेहरे पर सरकार को झुकना पड़ा और महात्मा भगवानदीन जी ने ।
दिखाई न देता था।' जेल में जिन-प्रतिबिंब विराजमान कराई, तब उनका
'उन्होने सनातन जैन समाज की स्थापना कर दी उपवास समाप्त हमा। भारत के राजनीतिक बन्दियों मे
थी। वे इसके परिणाम मे परिचित थे इसीलिये उन्होंने सेठी जी का यह प्रथम उदाहरण था, इसलिए भारतीय
उक्त सस्था की स्थापना से पूर्व सभी जैन-संस्थाओ से नेताओं ने भारत का जिन्दा मेस्वनी' कहकर उनका त्याग पत्र दे दिया था, जिनसे उनका तनिक भी संबध अभिनन्दन किया था।'
था। क्योकि वे स्वप्न मे भी उन सस्थाओ का अहित नही ___ 'जो सेठी जीवन भर गुरुडमवाद, पोपड़मवाद, सम्म
देख सकते थे, किन्तु जो अवतरित ही ब्रह्मचारी जी को दायवाद के विरुद्ध जीवनभर लड़ता रहा, मिटता रहा, मिटाने के लिए हुए थे, उन्हे केवल इतने से सन्तोष वही सेठी इन मजहवी दीवानो द्वारा इस तरह समाप्त न हुआ। वे ब्रह्मचारी जी के व्यक्तित्व को ही नही कर दिया जायगा। विधि के इस लेख को कौन मेट
अस्तित्व को भी मिटाने के लिए दृढ़ संकल्प थे। इस सकता था।'
भीष्मपितामह पर धर्म की आड़ मे प्रहार किए गए।' 'देश सेवा का व्रत लेने और जो भी अर्थ हाथ मे
___ 'इन्ही आधी तूफानो के दिनो (सन् २८ या २६) में आए, उसे देश सेवा मे ही न्योछावर कर देने के कारण
पानीपत मे श्री ऋषभ जयन्ती उत्सव था। ........."मैं सेठी जी स्वयं तो दारिद्रयव्रती थे ही, उनके परिवार को
सोच ही रहा था कि आज क्या खास सभा जम सकेगी भी यह सब सहना पड़ता था। परिवार के निमित्त मैंने
कि प० वृजवासीलाल बदहवास-से मेरे पास आए और कई रईसों से कुछ भिजवाने का प्रयत्न किया भी तो सब
एकान्त में ले जाकर बोल-गोयलीय अनर्थ हो गया, अब ब्यर्थ हुआ ।
क्या होगा ? मै घबराकर बोला-पडित जी, खैर तो है, 'राजनैतिक और आर्थिक दुश्चिन्ताओं के कारण सेठी।
___क्या हुआ? जी का मानसिक सन्तुलन आखिर खराब हो गया, और जब
वे पसीने को चाँद पर से पोछते हुए बोले- 'बाबा कही आश्रय न मिला तो ३० रुपए मासिक पर मुस्लिम
जी स्टेशन पर बैठे हुए हैं और यह कहकर ऐसे देखने लगे बच्चो को पढ़ाने पर मजबूर हो गये। अपने ही लोगो की
जैसे किसी भागी हुई स्त्री के मरने की खबर फैलाने के इस बेवफाई का उनके हृदय पर ऐसा आघात लगा कि
बाद, उसे पुन: देख लने पर होती । मुझे समझते देर उन्होंने घर आना-जाना भी तर्क कर दिया और २२ दिसम्बर
नही लगी कि ये बाबा जी कौन से है और क्यो आए है ? १९४१ को इस स्वार्थी संसार से प्रयाण कर गए।'
बात यह थी कि पानीपत में ब्रह्मचारी जी के भक्त काफी ___ जिस असाम्प्रदायिक तपस्वी की अर्थी पर कबीर थे उन्होंने आने के लिए उन्हे निमत्रण भी दिया था। की मैयत की तरह गाड़ने-फूकने के प्रश्न पर हिन्दु-मुस्लिम सभा का अध्यक्ष भी उन्ही को चुना गया तो एक दो संघर्ष होता। वह भी कुछ सम्प्रदायी मुसलमानो के षड्यत्र व्यक्तियो ने कुछ पक्षियों जैसी आवाज मे फब्ती कसी।