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कहाराष्ट्र में जैनधर्म
राजा।" यहां सप्तम शती का एक ताम्रपत्र भी प्राप्त माना जाये तो एलोरा का काल लगभग प्रथम शती सिद्ध हुआ है। अचलपुर के पास ही लगभग ८ मील दूर मुक्ता हो जाता है। पर इस बीच का कोई इतिहास उपलब्ध गिरि नामक जैन सिद्धक्षेत्र है। यद्यपि यह वर्तमान में नही होता। राष्ट्रकूट वश जैनधर्म का सरक्षक रहा है। वेतूल (म०प्र०) जिले के अन्तर्गत आता है पर यह मूलतः महाराष्ट्र के कुछ भाग पर भी उनका अधिकार था। अचलपुर का ही भाग होना चाहिए। यह जैन ग्रन्थों मे उनकी एक शाखा लातूर में स्थापित हुई जो ६२५ ई० मेंढागिरि (मेधागिरि) आदि नामो से जाना जाता है। मे एलिचपुर (अचलपुर) मे स्थानातरित हो गई। इसका आज भी यहां लगभग पचास जैन मन्दिर एक रम्य पहाड़ी प्रथम ज्ञात शासक दन्तवर्मन् वातायी चालुक्यों का करद पर अवस्थित हैं।
सामंत था। उसके उत्तराधिकारियो मे दन्तिदुर्ग ने ७४२ ये विदर्भ के प्रमख जैन नगर हैं, जिनके उल्लेख जैन में एलोरा पर अधिकार किया और उसे अपनी राजधानी ग्रन्थों में बहधा उपलब्ध होते है। पुरातात्विक प्रमाणो से बनाया। धर्मोपदेशमाला (८५८ ई०) से भी ज्ञात होता है भी यह सिद्ध हो चुका है । इनके अतिरिक्त कुट्टी गोदिया कि समयज्ञ नामक एक जैन मुनि भगुकच्छ से चलकर आदि अनेक ऐसे भाग है जहां जैन पुरातत्त्व के प्रमाण एलोरा के दिगम्बर जैन मन्दिर मे रुके । यही से दन्तिदर्ग उपलब्ध हो सकते है। भद्रावती (चादा जिला) ऐसा हो ने नासिक को अपने अधिकार में किया, वातापी चालुक्य नगर है जहां तीनो संस्कृतियों के पुरातात्विक प्रमाण उप- का अंत किया और कोशल, मालवा आदि देशो के राजाओं लब्ध होते हैं । यहा चीनी यात्री युवानच्यांग ६३६ ई० में को भी पराजित किया। उसने चिन्नकटपूर के श्रीवल्लभ पहुंचा था। उस समय भद्रावती का राजा सोमवशी सूर्य- राहप्पदेव को भी हराया, जिसका भाई वीरप्पदेव वीरसेन घोष था जिसने अनेक गृहामन्दिरों का निर्माण कराया। नाम से पचस्तूपान्वयी मुनि के रूप में प्रसिद्ध हा। वे पाचीन वैदिक वास्तशिल्प के भी उदाहरण मिलते हैं। राष्ट्रकूट राजधानी के ही समीपवर्ती वाटनगर मे आ बसे सरोवर के किनारे जैन मन्दिर भी हैं जिसके आसपास जैन और वही के चन्द्रप्रभ जैन मन्दिर तथा चामरलेण के पुरावशेष प्राप्त हुए है।
गुहामन्दिरों में अपना विद्याकेन्द्र स्थापित किया। राष्ट्रचांदवड या चद्रवट नगर का नाम भी उल्लेखनीय है, कूट नरेश ध्रव के शासनकाल में ही उन्होने जयधवला जिसकी नीव यादववशी राजा दीर्घपन्नार ने डाली थी। महाधवला जैसे महाग्रन्थो की रचना की।
ई. से १०७३ ई. तक यादवों का राज्य रहा। एलोरा की अन्तिम गुफा कैलाश जैन गुफा है जो इसी की समीपवर्ती चार हजार फुट ऊंची पहाड़ी पर चरणाद्रि पर्वत के उत्तरी भाग में है। उसके दो भाग
चरणादि पर्वत के उत्त रेणुका देवी का मन्दिर है जो वस्तुतः जैन गुहा मन्दिर
उत्खनन से प्रकाश में आए है-इन्द्रसभा और जगन्नाथहोना चाहिए, क्योकि उसकी दीवार मे तीन तीर्थकरो की
सभा । इन्द्रसभा बारह खभों पर खड़ा दो भाजल का एक मूर्तियां उत्कीर्ण है। जैन साहित्य में चांदवड का प्राचीन
मन्दिर है जिसे २०० फीट नीचे पर्वत काटकर बनाया नाम चन्द्रादित्यपुरी मिलता है।
गया है। इसमे दाईं ओर एक सुन्दर हाथी बना है। विदर्भ के समान अपरान्त और दक्षिणी भाग में भी बरामदे मे हाथी सहित इन्द्र की मूर्ति है जो वास्तुशिल्प जैन धर्म काफी लोकप्रिय रहा है। औरंगाबाद से १४ का बेजोड़ नमूना है । कला की दृष्टि से इन्द्रामा सर्वोत्तम मील दूर चरणाद्रि शैल गुफा मन्दिरों के लिए विख्यात भाग है । जगन्नाथसभा इन्द्रसभा से छोटा भाग है जिसमे एलोरा ग्राम है जिसे इतिहास मे एल्डर इल्वलपुर अथवा महावीर की मूर्ति विराजमान है। ऊपर के भाग मे सोलह एलागिरि के नाम से जाना जाता है। यहां जैन बौद्ध और फुट की पार्श्वनाथ प्रतिमा है। इस गुफा में प्राप्त शिलावैदिक तीनों संस्कृतियों का वास्तुशिल्प दिखाई देता है। लेखों के आधार पर इसका समय आठ से तेरहवी शती इस गांव की स्थापना इलिचपुर के राजा यदु ने आठवी तक ठहराया जा सकता है। हवी-१०वी शताब्दी के कछ शती में की थी। एलाचार्य कुन्दकुन्द से यदि इसे सम्बद्ध लेखो में यहां नाग द, दीपनदि आचार्यों तथा उनके शिष्यो