Book Title: Anekant 1989 Book 42 Ank 01 to 04
Author(s): Padmachandra Shastri
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 22
________________ १५, वर्ष ४२, कि०१ अनेकान्त के फाल्गुन मास की त्रयोदशी के दिन आयोजित उत्सव मे मे मूलपाठ से अंकित शिलाखंड का न मिलना ऐसा सोचने किन्हीं लाला लक्ष्मीचन्द्र के जिनमाल धारण किये जाने के लिए वाध्य करता है। का उल्लेख किया गया है तथा बताया गया है कि इस मन्दिर का निर्माण होने के पश्चात निर्माताओ ने समय सर्व प्रथम लाला लक्ष्मीचन्द्र ने मदिर के जीर्णोद्धार सम्भवतः विघ्नहर पार्श्वनाथ तीर्थकर की प्रतिमा प्रतिका कार्य आरम्भ किया था। ष्ठापित कराई थी, जिसकी फणावलि भग्नावशेष के रूप अभिलेख के परिप्रेक्ष्य में विचारणीय तथ्य में आज भी द्रष्टव्य है। अभिलेख मे संवत् १२१२ मे पार्श्वनाथ-प्रतिमा विद्यमान रही बताई गई है। (१) मूलपाठ : प्रस्तुत लेख जिस मूलपाठ को पढ़कर सवत् १८८३ मे इस मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया लिखा गया वह शिलालेख था या मूर्ति लेख यह खोज का गया था। इस समय भी कोई अप्रत्यासित घटना अवश्य विषय है, कोई प्रमाणिक निर्णय नही लिया जा सकता। घटित हुई है। पार्श्वनाथ-प्रतिमा को इस मन्दिर से (२) संवत् १२१२ मे मन्दिर का पुननिर्माण । अन्यत्र कही स्थानान्तरित किया गया तथा वर्तमान (३) संवत् १२१२ मे पार्श्वनाथ-प्रतिमा का विद्यमान प्रतिमा वहां प्रतिष्ठापित की गई। रहना । यह प्रतिमा स्कन्ध भाग पर केश राशि के अकन से शोधकण : तीर्थकर आदिनाथ की प्रमाणित होती है। कुण्डलपुर (दमोह) के बड़े बाबा की प्रतिमा भी ऐसी ही है। उस प्रथम लेख के प्रथम दोहे से यह तो निविवाद रूप से प्रतिमा के स्कन्ध भाग पर भी केशराशि अकित की कहा जा सकता है सोनागिरि पर तीथकर चन्द्रप्रभ की प्रतिमा सवत् ३३५ के पूस मास की पूर्णिमा के दिन मदिर मे प्रतिष्ठिापित की गई थी। अपने-अपने समय की चन्द्रप्रभ शोर पार्श्वनाथ प्रति माएँ अन्वेषणीय है। आशा है विद्वान् अवश्य ध्यान देंगे। क्या वर्तमान प्रतिमा चन्द्रप्रभ तीर्थकर की है ? यह एक विचारणीय तथ्य है। इसके लिए आवश्यक है वर्त- सवत् १२१२ म आरम्भ किया गया मन्दिर का . मान प्रतिमा की पूर्ण जानकारी । ध्यातव्य विषय है- पुननिर्माण कार्य पूर्ण होने मे सम्भवतः एक वर्ष लगा था। (१) वर्तमान प्रतिमा की आसन पर तीर्थकर परि पर्वत के नीचे मन्दिर क्रमाक १६ मे विराजमान मुनि सुव्रत तीर्थंकर प्रतिमा को आसन पर अकित लेख मे चायक चिह्न का नहीं होना । प्रतिमा-प्रतिष्ठा का समय संवत् १२१: बताये जाने से (२) प्रतिमा के शीर्ष भाग पर फणावलि का अवशेष। सोनागिरि मे सवत् १२१३ मे प्रतिष्ठा महोत्सव हुआ (३) प्रतिमा के स्कन्ध भाग पर केश-राशि का अकन। ज्ञात होता है जिसमे उक्त पुननिर्मित मन्दिर की एक नई इन विशेषताओ के परिप्रेक्ष्य में वर्तमान प्रतिमा मूल प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई थी। गोलापूर्व जैन इस प्रतिष्ठा नायक चन्द्रप्रभ तीर्थकर की प्रतिमा नही ज्ञात होती। महोत्सव मे आये थे तथा उन्होने यहा प्रतिमा-प्रतिष्ठा मन्दिर के पुननिर्माण के समय सवत् १२१२ में वह प्रतिमा कराई थी। प्रतिमा लेख निश्न प्रकार हैविद्यमान रही है। मन्दिर का पुननिर्माण कराते समय (१) सवत् १२१३ गोल्लापून्विये साधु सोढे सम्भवतः अति जीर्ण अवस्था मे रहने के कारण या कार्य तत्पुत्र साधु क्षीलण भार्या जिणा तयोः सुत सावु (साधु) कर्ताओं की असावधानी के कारण चन्द्रप्रभ प्रतिमा खडित वीलुण भार्या पल्हा सर्व । हो गई होगी। खण्डित-प्रतिमा पूज्य न रहने से उसे किसी २. जिननाथ नित्यं प्रणमति । जलासय में विसजित कर दिया होगा। मूलपाठ भी डॉ० नेमिचन्द्र शास्त्री ने यह निम्न प्रकार पढ़ा थासम्भवतः प्रतिमा को आसन पर अकित रहा है। वर्तमान "संवत् १२१३ गोल्लपल्लीवसे सा० सावू (साध) सोडो

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