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२४] अनेकान्त
[वर्ण १४ सम्बन्धित थी।
उन पंचमेष्ठियोंका रूप है। इसमें केवल अर्हन्त परमेष्ठीके इस चौवीसीमें मूल नायक प्रतिमा भ. पार्श्वनाथकी सिर पर छत्र सुशोभित है किन्तु यहां चतुविशति तीर्थकर है और प्रभामण्डल नेईस तीर्थंकरोंके चारों ओर बहुत साधा- प्रतिमाकी तरह छत्रमय नहीं है। रण ही है। नीचे की ओर धरणेन्द्र और पद्मावतीकी वेदीमें सिद्धचक्र भी प्राप्त हुआ है, जो वर्गाकार पीतल मूर्तियां हैं।
का है । इसमें भागेकी ओर जल निकलनेके लिए एक शिलालेख इस प्रकार हैं
नलिका है। इसका मध्य भाग पटेका पुष्पकी भांति मुड़ा स्वस्ति श्री मूलमंघ देशीय गणड मदन-दण्ड नायक हुआ है और अष्टकोणका है। मध्यमें और एका रवर्ती मडिसिडा व (मदि) गे-रा
चार कोणों पर लघु प्रतिमाएं अंकित हैं । मध्यमें अर्हन्तदेव २-य-राजगुरु मण्डलाचार्यरप्पा श्रीमद् माघनन्दी. विराजमान हैं पृष्टकोण पर सिद्ध दांई ओर आचार्य, बांई ओर सिद्धान्त चक्रवर्ति गलपि (य गुडगलु) श्री कोपण। साधु और सामनेकी पोर उपाध्याय परमेष्ठी आसीन हैं। ___ तीथंड इम्मेयर (प्रिथ्वी) गौदान प्रियांगने मालवेगे इस गोलाकारमें बीच-बीचके बचे हुए चार कोणोंमें सिद्ध पुटिद सुपुत्रारु वोपन-तम"ज.
भगवान बाई पोर तप, दाई ओर दर्शन, उपाध्यायकी -लि-मुक्यवनी इ (ज) नोंपिंगेयु चौबीस तीर्थकर बांई ओर चारित्र और दांई ओर ज्ञान है । इन पंचपरमेमडिसी कोटरु मंगल महा श्री श्री श्री
प्ठियोंके श्रादि अदरोंसे बनता है। कारमें जिस प्रकार शिलालेख नं० १०
पांच प्रतिमाओंका प्रतिनिधित्व है। उसी प्रकार पंचतीर्थ
नामक जैन पजामें भी इन्हीं पंचपरमेष्ठियोंका प्रतिनिधित्व यह शिला लेख भी कोप्पलमें प्राप्त एक जैन प्रतिमाके होता है । जैनोंकी पजामें एक और बात सामान्यतम पाई सिंहासनमें खुदा हुआ है। यह प्रनिमा भी नवाब मालार जाती है कि चौबीस तीर्थकरोंका प्रतिनिधित्व संगमर्मरके जंगके संग्रहालयमें है।
चनुर्विशपट्ट या चौविस्त्रतमें मान लेते हैं। इस शिलालेखमें बताया गया है कि यह पंचपरमेष्ठियों
शिलालेख इस प्रकार हैकी प्रतिमा अचन्नमके पुत्र देवना द्वारा निर्मित हुई थी।
१-स्वस्ति श्री मूलसंघ देशियगण पुस्तक गच्छ इंगले यह परम्बरंग नामक राजधानीके कुलगिरि सेनावो थे और
२--श्वरड बालिम माधवचन्द्र भट्टारकर गुड्डु श्रीमजो मूलमंघके दशियगणसे सम्बन्धित पुस्तक गच्छकी ३-द-राजधानी पत्तनम इरंबरोय कुल (गिर) सेनावो इंगलेश्वर शाखाक माधवचन्द्र भट्टारकके प्रिय शिष्य थे,
४-व अचन्न (यवर) माग देवननु सिद्धचक्रड नौनोंपि धार्मिक अनुष्ठानोंके कारण यह सिद्धचक्रड नौम्पी और
श्रु. श्र तपंचमी नौम्पी कहलाते थे। इन अनुष्ठानोंका विवरण ५-तपंचमी-नोम्पिगे मडिसिडा पंच परमेष्ठिगल प्रविमे श्री नरसिंहाचार्यने अपनी रिपोर्ट में इस प्रकार दिया है:- ६-मंगलम् सिद्धचक्र नौम्पी सिद्धोंके स्मरण रक्खा जाने वाला एक व्रत इस प्रकार कोप्पल के इन शिला लेखों से कोप्पल या है और अ तपंचमी नौम्पी एक व्रत है .. जो जैन शास्त्रोंके कोपवाल की महत्ता का स्वयं अन्दाज लगा सकते हैं। प्राशा उपलक्षमें ज्येष्ठ शुक्ला पंचमीको रक्खा जाता है। है विद्वान अपनी नवीन खोजोंसे उक्त विषय पर प्रकाश
इस मूर्तिमें अर्हन्त, सिद्ध-प्राचार्य उपाध्याय और साधु डालनेका यत्न करेंगे।