Book Title: Anandrushi Abhinandan Granth
Author(s): Vijaymuni Shastri, Devendramuni
Publisher: Maharashtra Sthanakwasi Jain Sangh Puna
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मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज मेरठ उ० प्र०
३१ अगस्त, १९७३
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आप आचार्यप्रवर श्री आनन्द ऋषि जी के सम्मान में अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर रहे हैं । आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी ने समाज एव राष्ट्र की महती सेवाएं की हैं, अतः सज्जनों का कर्त्तव्य है कि उन्हें साधुवाद देवें । - शुभमस्ते
वित्त, अल्प बचत व वनमंत्री महाराष्ट्र राज्य सचिवालय, मुंबई-३२ ४ जनवरी, १६७४
हार्दिक प्रसन्नता की बात है कि जैन आचार्य श्री आनन्द ऋषिजी के जीवन के ७४ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में जैन समाज की ओर से उनका सार्वजनिक अभिनन्दन किया जा रहा है और इस अवसर पर उन्हें अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया जा रहा है ।
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भारतीय संस्कृति ऋषियों, मुनियों, साधु एवं सन्तों की परम्परा से भरी पड़ी है । उनके उपदेश हमें सांस्कृतिक विरासत के रूप में मिले हैं। हमारी ऐतिहासिक भावनाओं के अनुसार आचार्यप्रवर श्री आनन्दऋषि जी का अभिनन्दन किया जाना अपने में एक सर्वोपरि कार्य है ।
मैं आचार्य श्री आनन्दऋषि जी के अपने जीवन के ७४ वें वर्ष पूर्ण करके ७५ वें वर्ष में प्रवेश करने के उपलक्ष्य में उनके भावी जीवन में दीर्घायु होने के प्रति हार्दिक शुभ कामना प्रकट करता हूँ और अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण समारोह की सफलता चाहता हूँ ।
-म० ध० चौधरी
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