Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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६]
प्रस्तावना
१४ चारुदत्ताख्यानक (पृ. २८५)।
भावटिकाख्यानक (आ. क्र. ७३) अन्तर्गत चारुदत्ताख्यानकमें। १५ मित्राणन्दाख्यानक (पृ. ३२१)।
भावटिकाख्यानक (आ. क्र. ७३) अन्तर्गत अमरदत्तमित्राणन्दा
ख्यानकमें। १६ रामाख्यानक (पृ. ३२५)।
यादवाख्यानकम (आ. क्र. ११०)। १७ भरताख्यानक (पृ. ३४३)।
भरताख्यानको (आ. क्र. २३)। १८ श्रमण्याख्यानक (पृ. ३४७)।
अर्हनकाख्यानकों (आ. क्र. १००)। १९ रामाख्यानक (पृ. ३४७)।
यादवाग्न्यानकमें (आ. क्र. ११०)। ग्रन्थके ४१ अधिकारों के नाम तथा आख्यानकों के नाम और प्रत्येक आख्यानकों के कथाप्रसंगों का विस्तृत विषयानुक्रम दिया गया है। अतः जिज्ञासु पाठक विषयानुक्रम देख लें ऐसा अनुरोध है।
आख्यानकमणिकोश मूल के कर्ता श्री नेमिचन्द्रसरि
आचार्य नेमिचन्द्रसूरि जैन श्वेताम्बर परम्पराके सुविख्यात विशाल बृहद्गच्छ के आचार्य हैं । उनका समय विक्रम का बारहवां शतक सुनिश्चित है। उनकी छोटी बडी पांच रचनाओं में से प्रस्तुत आख्यानकमणिकोश और आत्मबोधकलक को छोड अन्य तीन रचनाओं में उनकी परिचायक प्रशस्ति मिलती है। उन में भी " रत्नचूडकथा" नामक कृति की प्रशस्ति में उनका परिचय शेष दो कृतियाँ उत्तराध्ययनवृत्ति और महावीरचरिय की अपेक्षा अधिक स्पष्ट है। इस प्रशस्ति के
आधार से एवं आख्यानकमणिकोशवृत्ति की प्रशस्ति के आधार से और आख्यानकमणिकोश के वृत्तिकार आम्रदेवसूरि के शिष्य नेमिचन्द्रसूरिकृत प्राकृतभाषानिबद्ध 'अनन्तनाथचरित्र' (अप्रकाशित) की प्रशस्ति के आधार से प्रस्तुत आचार्य नेमिचन्द्रसूरि के पूर्ववर्ती आचार्यों का क्रम इस प्रकार है--
बृहद्गच्छ में (प्रा. वडगच्छ, वडगच्छ ) हुए देवसूरि ( विहारुक) के पैट्टधर नेमिचन्द्रसूरि के पट्टधर उद्योतनसूरि के शिष्य आम्रदेवोपाध्याय के शिष्य नेमिचन्द्रसूरि प्रस्तुत मूल ग्रन्थ के कर्ता है । इन नेमिचन्द्रसूरि के दीक्षागुरु आम्रदेवोपाध्याय थे। और उन्हें आनन्दसूरि के मुख्य पट्टधर के रूप में स्थापित किये गये थे । इस का स्पष्टीकरण इस प्रकार है
___ उपरोक्त उद्योतनसूरि के समकालीन सगच्छीय पांच आचार्य थे । १ यशोदेवसूरि २ प्रद्युम्नसूरि ३ मानदेवसूरि ४ देवसूरि और ५ अजितदेवसूरि । इन पांच नामों में से प्रथम चार के नाम आख्यानकमणिकोषकारकृत "रत्नचूडकथा" नामक ग्रन्थ की प्रशस्ति में मिलते हैं। पाचवाँ नाम आख्यानकमणिकोशवृत्ति की प्रशस्ति में तथा वृत्तिकार आम्रदेवसूरि के शष्य नेमिचन्द्रसूरिकृत अनन्तनाथचरित की प्रशस्ति में मिलता है। ये पांचों आचार्य उद्योतनसूरि के समकालमें विद्यमान थे
१. यह प्रन्थ विजयकुमुदसूरि द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हो चुका है। २. प्रवचनसारोद्धार (प्रकाशित) के कर्ता ये ही नेमिचन्द्रसूरि है।
३. देवसूरि सतत उद्यतविहारी होने से उनके पीछे विहारुक ऐसा विशेषण लगाया जाता था। इतना ही नहीं किन्तु उनकी शिष्यपरम्परा में भी कितनेक साधु को विहारुक कहा जाने लगा था ।
४. यहां पट्टधर के रूप में बताये गये आचार्य अपने पूर्व आचार्य के द्वारा दीक्षित ये या नहीं यह जानने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं है।
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