Book Title: Akhyanakmanikosha
Author(s): Nemichandrasuri, Punyavijay, Dalsukh Malvania, Vasudev S Agarwal
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad
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प्रस्तावना
चतुर्थ परिशिष्ट (पृ. ३९८ से ३९९)
प्रस्तुत ग्रन्थ में आई हुई तीन अपभ्रंश कथाओं के सिवाय प्राकृत कथानकों में जो भा अपभ्रंश पद्य आये हैं उनका संग्रह इस परिशिष्ट में किया गया हैं। इस परिशिष्ट में निम्न अपभ्रंश पद्य छूट गये हैं.. पृ. ८१ पद्यांक १, पृ. १३७-३८ प.८, पृ.१३६ प. २-३ । पंचम परिशिष्ट (पृ. ४००)
यहाँ ग्रन्थान्तर्गत ऋतुवर्णन, तथा नग, नगर, युद्ध, अनुरक्त-विरक्तनारी, युवती, नगरप्रवेश, सार्थ, स्कंधावार आदि वर्णनों का निर्देश पत्राङ्कों के साथ कर दिया है। पष्ट परिशिष्ट (पृ. ४००)
तीर्थकरादि की स्तुतिओं का निर्देश इसमें किया गया है। सप्तम परिशिष्ट (पृ. ४०१ से ४१२)
इस ग्रन्थ में से चुनकर कुल ३८३ सुभाषित पद्यों का उनके विषयों की सूचना के साथ स्थलनिर्देश करके इस परिशिष्ट में संग्रह किया गया है। अष्टम परिशिष्ट (पृ. ४१३ से ४१५)
प्रस्तुत ग्रन्थ में से लोकोक्तियों, सिद्धवाक्य जेसी कहावतों के १२२ पद्यांशों का संग्रह प्रस्तुत परिशिष्ट में किया गया है। इनमें निम्न ५ जोड लेना चाहिए १- 'पोरिसविहवा जम्हा दइवं पि छलंति सप्पुरिसा ।' पृ. १५० गा. ६१ । २"विज्जाजुयाणमहवा जणाण सम्वत्थ कल्लाणं ।' पृ. १७९ गा. २।३- 'अम्मापिऊणमहवा हिययमवच्चे हियं चेव । पृ. १७९ गा. ५ । ४- 'एगुयरसंभवा वि हु न हुंति कइया वि समसीला ।' पृ. २६५ गा. ३ । ५- 'सीलरयणे विगटे न सुंदर उभयलोगे वि ।' पृ. २९४ गा. १७५ ।
अभ्यासी पाठकों को इन पद्यांशों में से लोगों द्वारा बोली जाती कुछ उक्तियों का परिचय मिलेगा।
शुद्धिपत्रक (पृ. ४१६ से ४२२)
दृष्टिदोष और प्रमाद से मुद्रण में रहे हुए कुछ अशुद्ध पाठों का शुद्धिपत्रक दे दिया गया है। शुद्धिपत्रक के छपे जाने के बाद भी जो अशुद्धियाँ हमारे देखने में आई उन्हें भी यहाँ टिप्पगी में दे दिया गया है।
पत्राइ गाथाङ्क अशुद्ध शुद्ध १६ पंक्ति-३२ देसस्त देसस्स १.३ ३१ विजयवाई विजियवाई
१३ जयाणदो जिणाणदो १ निसेस निस्सेस २७७ तुइ ३२६ कहिजई कहिज्जइ
४५३ गरूय २२३ ५५ संपई संपइ
पत्रात गाथाङ्क अशुद्ध शुद्ध
२१ कुमारी कुमरी २४४ पं. ७ ऋषिदत्ता ऋषिदत्ता , ८ 'मत्स्यमा मत्स्य
(मक्षिका मल्ल' २४६ २२ पसत्तमणो पसन्नमणो
सणिय- सणिय
महामह महोमुह २५२ २४७ ललक ललक
पत्राङ्क गाथाह अशुद्ध २६२ १२ कुणास कुणसु २६३ शीर्षके भावशल्शा- मोहातमृत
नालोचन- कुगतिपात
दोषाधि दर्शकाधि २७५ १५ ताण ताण अ
१०५ निवेइवं निवेइयं ९३ १३. कमलमेहो कालमेहो ३२८५१ मरि मारि
गरुय
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