Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका, सू ६ धारिणीदेवीस्वप्नस्वरूपनिरूपणम् ९३ निद्राणा२-पुनःपुनरीषन्निद्रामनुभवन्ती सती 'एग महं' एकं महान्तम् अति विशालं 'सत्तुस्सेह' सप्तोत्सेधं-सप्तहस्तोछायं 'रययकूडसन्निहं' रजतकूटसन्निभंरौप्यशिखर सदृशम् अतिश्वेतमित्यर्थः 'सोम' सौम्य-प्रशस्तं 'सोमागारं' सौम्याकारं सर्वाङ्गसुन्दरं लीलायत' लीलायन्तं-क्रीडन्तं 'जंभायमाणं' जम्भमाणकृतज़म्भं 'नहयलाजो ओयरतं' नभस्तलादवतरन्तम् आकाशादागच्छन्तं 'मुह. मइगयं' मुखमतिगतं-मुखे प्रविशन्तं 'गयं' गज हस्तिनं धर्मकर्ममभावप्रभवं हुई उस धारिणी देवीने (एगंमहं) एक अति विशाल (सत्तुस्सेहं) सात हाथ ऊँचे (स्ययकूडसन्निह) चांदी के पर्वत के शिखर के समान अति श्वेत (सोमं) प्रशस्त (सोमागारं) सर्वाङ्ग सुन्दर (लीलायंत) क्रीडा करते हुए (जंभायमाणं) जंभाते हए तथा (गगणयलाओ ओयरंत) आकाशतल से उतरते हुए (गयं) हाथीको (मुहमइगयं) मुख में प्रवेश करते हुए देखा। सूत्रस्थ “पूर्वरात्रापरकालसमय” पद यह प्रकट करता है । कि रात्रि के प्रथम प्रहर में देखा गया स्वप्न १ वर्ष में फल देता है । द्वितीय प्रहर में देखा गया स्वप्न आठ मास में फल देता है तथा नव माह और ७॥ दिन रात जब समाप्त हो जाती है तब सन्ततिका प्रसव होता है। स्वमशास्त्र में यही बात उक्तंच करके कही हुई हैं:--
राः प्रथमे यामे इत्यादि -इसका भाव इस प्रकार है-रात्रि के प्रथम प्रहर तथा द्वितीय प्रहर में देखा गया स्वम क्रमशः १ वर्ष तथा मास में जसे फल देता है वैसे ही तीसरे प्रहर में देखा हुआ स्वप्न छ माह में तथा चतुर्थ प्रहर में देखा हआ स्वप्न १ पक्ष में फलित होता है।Gui माती ते पाणी वाये (एगं महं) मे भूप विशण (सत्तस्सेह) सात थ या (रय यकूटसन्निह) यांहीना डंगरना शिम२ वा भूप धोका (सोम) प्रशस्त (सोमागारं) सवा सुन्६२ (लीलायंत) 13. ४२ता (जंभायमाणं)
॥ माता तेभ (गगणयलाओ ओयरंत) माशभांथी उतरता (गयं) हाथीने (महमइगय) भां भी प्रवेशता नयो सूत्रमा मासा "पूर्वरात्रापरत्रकालसमय" આ પદ એમ બતાવે છે કે રાતના પહેલા પહોરમાં જોયેલું સ્વપ્ન એક વર્ષમાં ફળ આપે છે અને બીજા પહોરમાં જેએલું સ્વમ આઠ માસમાં ફળ આપે છે, તથા નવમાસ અને સાડા સાત (છા) દિવસ રાત જ્યારે પૂરા થાય છે. ત્યારે સંતતિને પ્રસવ થાય છે. સ્વપ્નશાસ્ત્રમાં એજ વાત ઉંમત ચ” કરીને કહેવામાં આવે છે –
"रात्रे प्रथमे यामे इत्यादि" मेने। आशय मा प्रमाणे जे-रात्रिना पडसा બીજા પહોરમાં જોયેલું સ્વપ્ન અનુક્રમે એક વર્ષ અને આઠ માસમાં ફળ આપે છે, તેમજ ત્રીજા પહેરમાં જોયેલું સ્વપ્ન છ માસમાં અને ચેથા પહેરમાં જોયેલું સ્વપ્ન
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧