Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे
'नवायए' नवायतः = नवहस्तप्रमाणाऽऽयामः ' दसपरिणाहे' दशपरिणाहः दशहस्तप्रमाणो मध्यभागे इत्यर्थः 'सत्तंग पइट्टिए' सप्ताङ्गप्रतिष्ठितः, तत्र सप्ताङ्गानि - चत्वारश्चरणाः, शुंडादण्डः, पुच्छो, जननेन्द्रियं च एतानि प्रति ष्ठितानि शुभानि यस्य स तथा 'सोमे' सौम्यः =भद्राकृतिः 'सुसंठिए ' सुसंस्थितः =प्रशस्त संस्थानयुक्तः, तथा 'संमिए' सम्मितः = प्रमाणोपेताङ्गः 'सुरूवे' सुरूपः = शोभनशरीरः 'पुरओ' पुरतः अग्रतः अग्रभागे 'उदग्गे' उदग्रः उच्चः 'समूसियसिरे' समुच्छ्रितशिरस्कः उन्नतमस्तक : 'सुहासणे' शुभासनः शुभानि आसनानि= स्कंधादीनि यस्य सः 'पिट्ठओ वराहे' पृष्टतो वराहः पृष्टतः पश्चाद्भागे वराह इव कर इव पृष्ठपदेशे अवनतः, 'अइयाकुच्छी अजिकाकुक्षिः एव अजिका तद्वत्कुक्षिरुदरं यस्य सः उन्नतोदर इत्यर्थः, 'अच्छिद कुच्छी' अछिद्रकुक्षिः = छिद्रवर्जितोदरः मांसेन परिपुष्टत्वात् 'अलंब तुम्हारा शरीर था, नौ हाथ का तुम्हारा आयाम (लंबा था, दश हाथ प्रमाण तुम मध्य भागमें थे, तुम्हारे सातों ही अंग सुप्रतिष्ठित थे-- चारों चरण, सूंड, पूंछ, एवं जननेन्द्रिय ये सातों अंग बड़े अच्छे थे--तुम्हारी आकृति भद्र थी तुम्हारा संस्थान -- प्रशस्त था ( सुरूवे ) प्रमाण में जिस अंग की शरीर के अनुसार जैसी रचना होनी चाहिये वैसी ही रचना तुम्हारे प्रत्येक अंग की थी। इसलिये तुम्हारा शरीर बहुत ही सुडौल था । ( पुरओ उदग्गे) अग्र भाग तुम्हारा उन्नत था, ( समुसियसिरे ) मस्तक विशाल था, ( सुहासणे) कंध आदि बैठने के स्थान तुम्हारे बडे मनोहर थे, ( fuga वराहे) वराह के जैसा तुम्हारा पृष्ट प्रदेश झुका हुआ था । ( अइया कुच्छी) अजा के उदर समान तुम्हारा उदर थाअर्थात् उन्नत था (अच्छिदकुच्छी ) वह छिद्र से वर्जित था-प्रभाग ने तमारं शरीर हुतु नव हाथनो तभारो आयाम (विस्तार) हुतो. તમારો મધ્યભાગ દશ હાથ જેટલા હતા. તમારા સાતે અંગ સુપ્રતિષ્ઠિત હતા. એટલે કે ચારે પગ, સૂંઢ, પૂછ્યું અને જનનેન્દ્રિય આ સાતે અંગે। બહુ જ સારાં હતાં. तभारी आहृति लद्र हती. तभाई संस्थान प्रशस्त हुतु. ( सुरूवे ) सप्रभाणु અંગની રચના શરીર મુજખ જેવી હાવી જોઇએ, તેવીજ રચના તમારા દરેકે દરેક अ ंजनी हुती. भेटला भाटे तभाई शरीर महुन सुडोज तु. ( पुरओ उदग्गे ) तमाशे आगजनो लोग उन्नत हतो. ( समूसियसिरे) भाथु विशाण हुतु. (सुहासणं) सुध वगेरे मेसवानी न्याओ महु सरस हुती. ( पिट्ठओ वराहे) वराह (मूबर) नी प्रेभ तभारी पीउनो लाग नभेसेो हतो. ( अइया कुच्छी) जरीना पेटवु तभा पेट तुटले हे उन्नत हुतु. ( अच्छिद्दकुच्छी)
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શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧