Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 709
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ३ जिनदत्त=सागरदत्तचरित्रम् गमनाय = तत्र गन्तुमुत्कण्ठितौ गतौ च ततस्तदनन्तरं खलु सा वनमयूरी तौ सार्थवाहदारको 'एजमाणे' एजमानौ प्रत्यागच्छन्तौ पश्यति दृष्ट्वा च ' 'भीया' भीताः अकस्माद् भयजनकवस्तुदर्शनेन भयं प्राप्ता 'तत्था' त्रस्ता - भयजनितदुःखं प्राप्ता स्तब्धा वा क्षणमात्र भयेन निश्चला जाता 'तसिया' अन्तर्भावितण्यर्थः, त्रासिता आत्मनः प्रतिप्रदेशं भयेन संक्रान्ता जाता 'उब्विग्गा' उद्विग्ना - त्राणशरणरहितत्वेनोद्वेगं प्राप्ता 'पलाया' पलायिता - उड्डयनोद्युक्ता 'महया २ सद्देणं' महता २ शब्देन उच्चस्वरेण 'केकारवं' मयूरशब्दं 'त्रिणिम्यमाणो २' विनिर्मुञ्चन्ती = पुनः पुनः कुर्वती मालुका कक्षात् 'पडिनिक्ख मइ' प्रतिनिष्क्रामति- निस्सरति 'पडिनिक्खत्ता' प्रतिनिष्क्रम्य निस्सृत्य स्वस्थानाडी 'एस' एकस्यां वृक्षशाखायां 'ठिच्चा' स्थित्वा तौ सार्थवाहदारकौ तं ६९७ - सत्थवाहदारए एज्ज माणे पासइ) उस वनमयूरीने उन दोनों सार्थवाह दारकों का ज्यों ही आते हुए देखा तो (पासित्ता) देखकर (भीया तत्था तसिया उब्बिग्गा पलाया) भयभीत हो गई त्रस्त हो गई - - अकस्मात् भयजनक वस्तु को देखने से भय जनित दुःखको प्राप्त हुई - अथवा क्षण मात्र के लिये भयसे निश्चल हो गई- आत्मा के प्रतिप्रदेश में भय से युक्त हो गई, उद्वेग को प्राप्त हो गई और उस स्थान से उडी (महार सदेणं के कारव विणिम्यमाणी२ मालुयाकच्छाओ पडिनिक्खमइ) उडती२ बडे जोर २ से केकारव (शब्द) बारबार करती करती वह उस मालुका कच्छक से बाहर हो गई (पडिनिपख मित्ता एगसि रुक्खडालयंसि ठिचा ते सत्थवाहदारए मालुयाकच्छ व अणिमिसाए दिट्ठिए पेहमाणी २ चिट्ठइ) बाहर होकर एक શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧ તે खलु भवा भागण वंध्या (तएणं सारणमऊरी ते सत्यवाहदारए एज्जमाणे पासद) ते ढेो मने सार्थवाहोने लेया भने (पासित्ता) लेधने (भीया तत्था तसिया उब्बिग्गा पलाया) हरी गर्छ, संत्रस्त थ गए सोयिंता लय पभाउनारी वस्तुने लेहाने ते દુઃખ પામી, અથવા તે તે ભયભીત થઈને થાડા વખત માટે સ્તબ્ધ થઇ ગઇ, તેના આત્મપ્રદેશમાં ભય પ્રસરી ગયા. તે ઉદ્વિગ્ન થઇ ગઇ તેની સામે રક્ષાના કોઇ પણ જાતના ઉપાય હતા નહિ તેથી તે વ્યાકુળ બની ગઇ અને તે સ્થાનેથી ઉડી (महया २ सद्दणें केकारवं विणिम्मुयमाणी २ मालुया कच्छाओ पडिनिक्खमड़) अने भोटा स्वरेथी टडूम्ती २ उडती ते भावुभ हुन्छथी महार नीडजी गध. (पडिनिक्खमित्ता एसि रुक्क्खडलयंसि ठिचा ते सत्थवाहदारए मालुवा कच्छयं च अणिमिसाए दिट्ठिए पेहमाणी२ चिट्ठा) भालुअ छनी महार नीजीने ते

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