Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 737
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ४ गुप्ते द्रियत्वे कच्छपशृगालद्रष्टान्तः ७२५ सुंसुमाराणां शिशुमाराणां-जलजन्तुविशेषाणां च शतिकानां घ साहस्रिकाणां च शतसाहस्रिकाणां यूथानिवृन्दानि निर्भयानि निरुद्विग्नानि सुखंसुखेन अभिरममाणानि २ विहरन्ति ॥ मू. २ ॥ मूलम्-तस्स णं मयंगतीरदहस्स अदूरसामंते एत्थणं महं एगे मालुयाकच्छए होत्था, वन्नओ, तत्थणं दुवे पावसियालगा परिवसंति, पावा चंडा रोदा तल्लिच्छो साहसिया लेहियपाणी आमिसत्थी आमिसाहारा आमिसप्पिया आमिसलोला आमिसं गवेसमाणा रति वियालचारिणो दिया पच्छन्नं चावि चिटुंति ॥सू. ३ ॥ टीका-'तस्सणं' इत्यादि तस्य खलु मृतगगातीरहूदस्यादरसामन्ते अत्र खलु महानेको मालुकाकक्षक असीत्, वर्णकः अस्य द्वितीयाध्ययने व्याख्यातः, तत्र खलु द्वौ 'पावसियालगा' पाप शगालको पापपरायणौ शृगालौ सयसाहास्सियाण य जहाई निब्मयाई निऊन्विग्गाई मुहंसुहेण साहस्सियाण य अभिरममाणाई२ विहरंति) उसमें अनेक ग्राहों के अनेक मकरों के अनेक शिशुमारों के, अनेक शतसाहनिकों के यूथ के यूथ निर्भय और निरुद्विग्न होकर आनन्द के साथ विचरते रहते थे। सू. । २। 'तस्स णं मयंगतीरदहस्स इत्यादि ॥ टीकार्थ-(तस्स णं मयंगतीरदहस्स) उस मृत गंगातीर हूद के (अदू. रसामंते) न अतिदर और न अति समीप प्रदेश में (एत्य णं महं एगे मालयाकच्छए होत्था) एक बड़ा भारी मालुका कच्छ था (वन्नओ) इसका वर्णन द्वितीय अध्ययन में किया जा चुका है। (तत्थणं दुवे पावसयसाह सियाणय, जहाई निब्भयाइ निरुधिग्गाई सुहं सुद्देण अभिरममाणाई२ विहरांति) ते ॥ भासांयाना, पण अन्यमामाना, घणा अाहाना, घण મગરના, ઘણું શિશુ મેરેના ઘણું સેંકડે, ઘણા સાહસિકેના, ઘણું શતસાહસિકના સમૂહ નિભીક અને નિરુદ્વિગ્ન થઈને સુખેથી વિચરણ કરતા હતા. આ સૂ. ૨ છે 'तस्म ण मयंगतीरदहस्स' इत्यादि ।। टी ---(तस्स ण मयंगतीरद्दहस्स) ते भृत गातार होना(अदरसामते) धणे २ प नहि तम४ मत्यत न प नहि सेवा प्रदेशमा (एत्थण महं एगे मालुयाकच्छए होत्था) मे मा वि भायु ४२७ हतो. (वन्नओ) भायु। ४२७४ वर्णन मीon अध्ययनमा ४२वामा माव्यु छे. શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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