Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 761
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ ४ गुप्तेंद्रियत्वे कच्छपशृगालद्रष्टान्तः ७४९ अब सूत्रकार इस अध्ययन के अर्थका उपसंहार करते हुए कहते हैं कि 'एवं खलु जंबू' ? इत्यादि । टीकार्थ--(समणेणं भगवया महावीरेणं चउत्थस्स नायज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते) श्रमण भगवान् महावीरने इस चतुर्थ ज्ञाताध्ययन का यह पूर्वोक्त रूपसे कच्छप के दृष्टान्त प्रदर्शन से पंचेन्द्रियों का दमन करना रूप अर्थ प्रतिबोधित किया है (एवं खलु जंबू ? तिबेमि) ऐसा हे जंबू ? मैं कहता हूँ । भगवान ने जैसा कहा है- वैसा ही यह मैने तुमसे कहा है--अपनी बुद्धि से कल्पित कर नहीं कहा है ॥ १५ ॥ श्री जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजी महाराजकृत " ज्ञाताधर्मकथाङ्गमूत्र" की अनगार धर्मामृतवार्षिणी व्याख्याका चतुर्थअध्ययन समाप्त ॥४॥ 'एवं खलु जंबू ? इत्यादि । टीकार्थ~-(समणेण भगवया महावीरेण चउत्थस्स नायज्झयणस्स अय. महे पण्णत्ते) श्रमाय लगवाने याथा ज्ञाताध्ययनना पूरित अर्थ आयमानुष्टांत આપીને સમજાવ્યું છે, પાંચે ઈન્દ્રિયેનું દમન કરવું એજ મુખ્ય ભાવ સૂચિત થાય છે. (एवं खलु जंबू ? तिबेमि) यू ! सामतने छ भने युछे तमा મેં તને પણ કહ્યું છે. પેતાની બુદ્ધિથી કલ્પના કરીને મેં તને એક વાત કહી નથી. સૂ. ૧પ શ્રી જૈનાચાર્ય જૈનધર્મદિવાકર પૂજ્યશ્રી ઘાસીલાલ મહારાજા કૃત જ્ઞાતાધર્મકથાનું સૂત્રની અનગાર ધર્મામૃતવર્ષિણી વ્યાખ્યાનું ચોથું અધ્યયન સપૂર્ણ છે ૪ . - શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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