Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 712
________________ ७०० % 3D ___ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे णेन ‘तिक इति कृत्वा इति परम्परं विचार्य मालुकाकक्षकमन्तो मध्येऽनुम विशतः-प्रवेशं कुरुतः अतः अनुप्रविश्य तत्र तस्मिन् स्थाने खलु वनमयूर्या द्व 'पुढे' पुष्टे पर्यायागते प्रसवकालजनिते यावद्भिन्नमुष्टि पमाणे अण्ड के दृष्ट्वा अन्पोऽन्यं शब्दयत: वातीकुरुतः शब्दयित्वा एवमवादिष्टां 'सेयं' श्रेयः अस्य प्रक्षेपयितुमित्यत्र सम्बन्धः, खलु हे देवानुप्रिय ! आवयोरिमे वनमयूराण्डके गृडीत्वा 'साणं. साणं' स्वासां स्वासां स्वकीयानाम् २ 'जाइमंताणं' जातिमतोनां विशिष्ट जातिमतां कुक्कुटिकानामण्डकेषु प्रक्षेपयितुम्-स्थापयितुम् , ततस्तदनन्तरं खलु 'ताओ' ता-आवयोर्जातिमत्यः कुकुटिकाः 'एए' एते अस्मत्समानीते अण्डकेमयूर्या अण्डके पुनः 'सए य अंडए' स्वकानि चाण्डकानि संरक्षन्त्यः सम्यक पोषणादिना 'संगोवेमाणीओ' संगोपायमाना-परकृतोपद्रवतः प्रतिपाल यन्त्यः विहरिष्यन्ति । ततस्तदनन्तर खलु आवयोः 'एत्थं' अव्र अस्मिन् विचार कर वे दोनों उस मालकाकच्छक के भीतर प्रविष्ट हो गये (अणुपविसित्ता तत्थणं दोपुढे परियागये जाच पासित्ता अन्नमन्नं सदावें ति) प्रविष्ट होकर वहां उन्होंने पुष्ट एकही साथ क्रमशः उत्पन्न हुए भिन्न मुष्टि प्रमाण दो अंडे को देखा देखकर फिर वे परस्पर में एक दूसरे से कहने लगे। कहकर फिर इस प्रकार उन्होंने विचार किया कि (सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमे वणमऊरी अंडए साणं २ जाइमंताणं कुक्कुडियाणं अंडएसु य पविखवावेत्तए) हे देवानुप्रिय ! हम दोनों के लिये यह बड़ी अच्छी बात है कि हम दोनों इन दोनों अंडो को अपनी २ जातिमती कुक्कुटिकाओं के अंडो में रख देवे (तएणं ताओ जाइमंताओ कुक्कुडियाओ एए अंडए सएय अंडए सएणं पवखवाएणं सारक्खमाणीओ संगोवेमाणीओ विहरिस्संति) इस तरह वे विशिष्ट जाति १२. भाभ विद्याशन तसा मन भायु ४२७मा प्रविष्ट थया. (अणुपविसित्ता तत्थ णं दो पुढे परियागये जाव पासित्ता अन्नमन्नं सदावेंति) प्रवेशीन તેઓએ એકી સાથે અનુકમે ઉત્પન્ન થયેલા મૂઠીના જેટલા પ્રમાણુવાળા બે ઈંડા જેમાં તે જોઈને તેઓ એક બીજાને કહેવા લાગ્યા, અને આ પ્રમાણે વિચાર કરવા લાગ્યા કે (सेय खलु देवाणुप्पिया! अम्हं इमे वणमऊरी अंडए साणं २ जाइमंताणं कुक्कुडियाणं अंडएस य पविखवावेत्तए) वानुप्रिय ! मापण मन भाटे से સારૂં છે કે આપણે બંને એ બંને ઈડાઓને પોતપોતાની મરઘીઓના ઈડાઓમાં મૂકી દઈએ (तएणं ताओ जाइमंताओ कुक्कुडियाओ एए अंडए सएय अंडए सएणं पक्खवाएणं सारक्खमाणीओ संगोवेमाणीओ विहरिस्संति) २ रीतेते ही agी જાતિની આપણી મરઘીઓ આપણા વડે લઈ જવાએલા હેલના ઈડા અને પિતાનાં ઈંડાનું શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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