Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 727
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् ७१५ एकस्यां चप्पुटिका यां-अङ्गुष्ठेन साधमङ्गुली तालिकायां चुटको ति भाषायाम् 'कयाए समाणीए' कृतायां सत्यां, 'अणेगाई' अनेकानि नहेलरासयाई नर्तन शतानि के कारवसयाणि' केकारवशतानि च कुर्वत् विहरति-विचरति। ततस्तदनन्तरं खलु ते मयरपोषकास्तं मयरपोतकं उन्मुक्तबालभावं यावत् नर्तन शतानि केकारवशतानि च कुर्वन्तं पश्यति, दृष्ट्वा तं मयरपोतकं गृह्णन्ति, गृहीत्वा जिनदत्तपुत्रस्याग्रे "उवणेति' उपनयंति- अर्पयन्ति । ततस्तदनन्तरं खलु स जिनदत्त पुत्रः सार्थवाहदारको मयूरपोतकम्, उन्मुक्तबालभावं यावत् नर्तनशतानि केकारवशतानि च कुर्वन्तं पश्यति दष्ट्वा च हृष्टतुष्ट:-- अतिशयेन संतुष्टः सन् 'तेसिं' तेभ्यो-मयूरपोष केभ्यो विपुलं जीवियारिह' जीविकाईमाजन्मनिर्वाहयोग्यं प्रीतिदानं पारितोषकं ददाति यावत सत्कारसम्मानयुक्तं कृत्वा 'पडिविसज्जेई" प्रतिविसर्जयति ॥ मूत्र १५॥ में सैकड़ों चद्रक थे। कंठ नील था। नृत्य कला में यह तत्पर रहता था। (एगाए चप्पुडियाए कयाए समाणीए अणेगाई न ल्लगसयाइं केकारवसयाई य करेमाणे विहरइ) एक ही चुटकी करने पर वह सैंकडों बार नृत्य और सैंकडो बार के कारय कर दिया करता था। (तएणं से मऊरपोसग्गा त मऊरपोयगं उम्मुक्क जाव करेमाणं पासइ, पासित्ता, तं मऊरपोयगं गेहूति गेह्नित्ता जिणदत्तपुत्तस्स उवणेति) इसके बाद जब उन मयूर पोषकोंने उस मयूरपोतक को बाल भाव सेरहित यावत् एक ही चुटकी में सैकडो बार नृत्य करते हुए तथा सैंकडो बार केकारव करते हुए देखा-तो देखकर उसे जिनदत्त के पास लेकर पहुँचे । (तएणं से जिणदत्तपुत्ते सत्थवाहदारए मऊरपोयगं उम्मुक्क जाव करेमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुट्टे तेसिं विउल जीवियारिहं पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ) जिनदत्तपुत्रने ज्यों हो उसे बालभाव से २हेतु तु. (एगाए चप्पुडियाए कयाए अणेगाई नलगसयाइ केकारवसयाई य करेमाणे विहरइ) मेन्यपटी सतiनी साथ तेसे पा२ नृत्य मने से ४ो वार टहुतु तु. (तएण' से मऊरपोसग्गा त मऊरपोयगं उम्मुक्कजाव करेमाण पासइ पासित्ता तं मऊरपोयगं गेहंतिगेण्हित्ता जिणदत्तपुत्तस्स उसति) त्या२ બાદ મેરને ઉછેરનારાઓ તે બચ્ચાને જુવાન તેમજ એક ચપટીને સાંભળીને સેંકડો વખત નાચતું તેમજ સેંકડો વખત ટહુકતું જોઈને તેને જિનદત્તની પાસે साव्या. (तएण से जिणदत्तपुत्ते सत्यवाहदारए मऊरपोयग उम्मुक्क जाव करेमाण पासइ, पासित्ता हट्ट तुढे तेसिं विउलं जीवियारिहं पीईदाण जाव पडिविसज्जेइ) न्यारे निहत्तना पुत्र भा२ना १२याने स्य५ पटावीन શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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