Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 730
________________ ७१८ ज्ञाताधर्मकथागसत्र लक्ष संख्यै द्रव्यैः पणिएहिय, पणि व्यवहारै तरूपव्यवहारैः 'जयं करेमाणे' जयं कुर्वन्-परेषां मयापोतानां पराजयं कुवन् विहरति-विचरति ।। 'एवामेव समणाउसो' हे आयुष्यमन्तः श्रमणा ! एवमेव-जिनदत्तपुत्र सार्थवाहवदेव योऽस्माकं निग्रन्थो वा निग्रन्थिी वा प्रवजितः सन् पञ्चसु प्राणातिपातविरमणादिमहावतेषु षटसु जी वनिकायेषु नर्ग्रन्थे प्रवचने च निश्शङ्कितः कस्मिश्चिदेकस्मिन तत्वे अश्रद्धानादिरूपादेशशङ्का सकलतत्वाबीच श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर. और महापथों में सौ, हजार, लाख, द्रव्यों की शर्त लगा कर दूसरों के मया पोतकोंको पराजित करने लगा।(एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा पवइए समणे पंचसु महाब्बएमु छसु जीवनिकाएसु निगंययावयणे निस्संकिए। निविए निवतिगिच्छे से णं इहभवे चेव यहणं समणाणं बहण समणीण जाव वीइवइस्सइ) हे आयुष्मन्त श्रमणो। इसी तरह जिनदनपुत्र सार्थवाह की तरह -जो हमारे निर्ग्रन्थ साधु अथवा निग्रन्थ साध्वीजन प्रवजित होकर पंच प्राणातिपात विरमणरूप-महावतों में छह जोवनिकायों में, निर्ग्रन्थ संबन्धी प्रवचनमें अथवा साधुमार्ग में निःशंकित होकर निःकांक्षित, निर्विचिकित्सासंपन्न होकर, विचरते हैं वे इस भव में अनेक श्रमण और अनेक श्रमणियों के यावत् अर्चनीय होते हैं पूजनीय होते हैं । तथा इस अनादि अंनतरूप चतुर्गतिवाले संसार के पार पहुँच जाते है। अर्थात् इस संसार सागर को पार कर देते हैं। शंका दो प्रकार की होती है-- १ एक देश शंका २ दूसरी सर्वदेश शंका। अहंत प्रति भाषित किसी एक तत्व में अश्रद्धान आदिरूप आत्मवृत्ति का नाम एक देश भाट, त्रि, यतु, य१२, भने भडापयामा मेसी, १२, eun द्रव्यानी शरत बावाने मी भारासोना भारना यां-माने सवा साय. (एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंयो वा निग्गथीपा पव्वइए समाणे पचसु महत्वएमु छसु जीवनिकाएस निग्गंथपावयणे निस्सकिए नकंखिए निवितिपिच्छे सेण इहभवे चेव बहण समणाण बहूण समणीण जाव वीइ. वइस्सइ) , सायुमन्त श्रभ।! सार्थ निहत पुत्रनी म मा२। નિગ્રંથ સાધુ કે નિગ્રંથ સાધ્વીજને પ્રજિત થઈને પંચ પ્રાણાતિપાત વિરમણ રૂપ મહાવ્રતોમાં. છ જવનિકામાં, નિર્ગથ સંબંધી પ્રવચનમાં, અને સાધુમાગમાં નિઃશકિત થઈને નિઃકાંક્ષિત નિર્વિચિકિત્સા યુકત થઈને વિચરણ કરે છે તેઓ આ ભવમાં ઘણું શ્રમણે અને ઘણી શ્રમણીઓને માટે અર્ચનીય હોય છે તેમજ પૂજનીય હોય છે. અને છેવટે અનંત રૂપ ચતુગતિવાલા સંસાર સમુદ્રને પાર પામે છે. એટલે કે તેઓ આ સંસાર સમુદ્રને તરી જાય છે. અહીં બે જાતની શંકાઓ ઉદભવે છે– (૧) દેશ શંકા, (૨) બીજી સર્વ દેશ શંકા અહંતવડે આજ્ઞાપિત કેઈપણ એક તત્વમાં અશ્રદ્ધાન વગેરેની આત્મવૃત્તિ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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