Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 723
________________ ७११ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ ३ जिनदत्त-सागरदत्तचरित्रम् दत्तपुत्र सार्थवाहदारको 'जेणेव' यत्रैव यस्मिन्नेव स्थाने 'से' तन्मयूर्या अण्डक वर्तते 'तेणेव' तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य च 'सि' तस्मिन् मयूर्या अण्ड के 'निस्संकिए' निश्शङ्कितः शङ्कारहितचिंतयति, 'सुवत्तए' सुव्यक्तकं परिपक्वत्वेन स्फुटतया विज्ञायमानं, खलु 'ममएत्थ' ममात्र क्रीडाकरणार्थ मयरपोतको भविष्यतीति, कृत्वा तन्मयूर्या अण्डकमभीक्ष्ण २ पुनः पुनः 'नो उव्वत्तेइ' नोद्वर्त्तयति-अधः प्रदेशं नो परिकरोति यावत् 'नो टिट्टियावेई' न टि टि इति शब्दयति-स्वकीयकर्णमूले धृत्वा न शब्दायमानं करोति । ततस्त. दनन्तरं खलु 'से' तद्, मयूर्या अण्डकं 'अणुव्वत्तिजमाणे' अनुद्वय॑मानं यावत्-स्वस्थानादन्यस्मिन्स्थाने ईषदप्यचाल्यमान, 'अटिहियाविज्जमाणं' टि टि इति न शब्दायमानः 'कालेणं समएणं' काले-समये प्राप्ते सति स्वयमेवात्मनैव उब्भिन्ने' उद्भिन्नः-परिपकावस्थायां स्फुटितं तदा मयूर्या वाहदारक जिनदत्त पुत्र (जेणेव से मऊरी अंडए) जहां वह मयूरी का अंडा था (तेणेव उवागच्छइ) वहा गया (उवागच्छि ना तंसी मउरी अंडयंसि निस्संकिए जाव सुबत्तए णमम एत्थ कीलावणए मऊरीपोयए भविस्सइ, तिकटु तं मऊरी अंडयं अभिक्खणं २ नो उव्वत्तेइ) जाकर वह उस मयुरी के अंडे के विषय में निःशंकित आदिवृत्ति वाला बना रहा--और विचारने लगा-- यह मयूरी अंडक परीपक्वरूप से स्पष्ट प्रतीत होने लगा--सो इसमें मुझे क्रीडा करनेका मयर पोतक पिष्पन्न हो जावेगा-- ऐसा विचार कर उसने उस मयूरीके अंडेको बार बार उद्वर्तित नहीं किया यावत् उसे शब्दायमान नहीं किया-अपने कान के पास रखकर उसे टीटी इस प्रकार से वाचालित नहीं किया (तएण से मऊरी अंडए अणुवित्तिजमाणे जाव अटिट्टियाविज्जमाणे कालेण समएणं उब्भिन्ने) इस तरह वह निहत्तनो पुत्र (जेणेव से मऊरी अंडए) न्यi ते सतुडतु (तेणेव उवागच्छइ) त्यां गयो. (उवागच्छित्ता तसि मऊरीअंडस निस्संकिए जाव मुवत्तरण मम एत्थ कीलावणए मऊरीपोयए भविस्सइ, तिकडु त मऊरी अड़यं अभिक्खण २ नो उव्वत्तेइ) त्यो भने देखनन विष ते નિઃશંક વૃત્તિવાળ બની ગયું અને વિચારવા લાગે--આ હેલનું ઈ ડું પરિપકવ થઈ ગયું છે આમ જણાય છે, આમાંથી મારી કીડા માટે હેલનું બચ્ચું જન્મશે. આ રીતે વિચાર કરીને તેણે તે ઈડાને સાગરદત્તના પુત્રની જેમ વારંવાર નીચે ઉપર કર્યું નહિ અને તેને શબ્દ યુક્ત પણ કર્યું નહિ. એટલે કે પિતાના કાનની पासे ने शमीन तेने इसवीन श६ युत मनाप्यु नाहि (तएण से मऊरी अंडए अणुवित्तिजमाणे जाव अटिटियाविजमाणे कालेणं समएण શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764