Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 716
________________ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे भविस्स उदाहु णो भविस्सइ तिकट्टु त मऊरी अंडयं अभिक्खणं अभिक्खणं उवत्तेइ परियत्ते आसारेइ आसारेइ संसारइ चालेइ फes air खोइ अभिक्खणं अभिक्खणं कन्नमूलंसि टिट्टियावेइ तएण से मऊरी अंडए अभिक्खणं अभिक्खणं उव्वतिजमाणे जाव टिट्टिया वेज्जमाणे पोच्चडे जाए यावि होत्था, तरणं से सागरदत्तपुत्त सत्थ वाहदारए अन्नया कयाइं जेणेव से मऊरी अंडए तेणेव उवागच्छइ उवोगच्छित्ता तं मऊरी अंडयं पोचडमेव पासइ पासित्ता अहोणं ममं एस किलावणए मऊरीपोयए ण जाए तिकट्टु ओहयमण जाव झियाय । एवमेव समणाउओ। जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरियं उवज्झायाणं अंतिए पव्वइए समाणे पंच महव्वसु छजी विनि कासु निग्गंथे पावयणे संकिते जाव कलुससमावन्ने से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूणं समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणं सावि गाणं होलणिजे निंदणिजे खिसणिज्जे गरहणिजे परिभवणिजे पर लोएवि य णं आगच्छइ बहूणं दंडणाणिय जाव अणुपरियई । सू. १४ | टीका -- तत्थणं' इत्यादि - 'तत्थणं' तत्र तयोर्द्वयोर्मध्ये 'जे से' योऽसौसागरदत्तपुत्रः सार्थवाहदारकः 'से णं' सः खलु 'कल' कल्ये - प्रातः समये ७०४ 'तत्थ णं जे से सागरदतपुते' इत्यादि । टीकार्थ - - (तत्थ) इनमें (जे से सागरदतपुते सत्यवाहदारए) जो सार्थवाह दारक सागर दत्तपुत्र था ( से णं कल्लं जाव जलते जेणेव से वणमऊरी अंडर तेणेव उवागच्छा) वह प्रातः समय यावत् सूर्यके प्रका 2 'तत्थणं जे से सागरदत्तपुते' इत्यादि । टीअर्थ - (तत्थ ) तेन्यामां (जे से सागरदन्ता पुन्तो सत्थवाहदारए) सार्थवाह सागरदृत्तनो पुत्र हतो ते (से णं कल्लं जाव जलते जेणेव से वणमऊरी अंडए तेणेच उवागच्छ) सवारे न्यारे सूर्य उदय याभ्यो त्यारे न्यां पनवगडानी શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧

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