Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 718
________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गम जीविष्यति नवेत्येवं तदीयसत्ताविषये संकल्पविकल्पवान्, 'कलुससमावन्ने' कलुषसमापन्नः मतेर्मालिन्यमुपगतः अंशतः पूर्वोक्तार्थमेवाह-'किन्न' किं खलु अत्र किमिति वितर्के ममास्मिन् वनमा अण्डके कीडनार्थ मयूरीपोतको भविष्यति ? 'उदाहु' उताहो-अथवा न भविष्यति, इति कृत्वा 'तं मऊरी अंडयं' तन्मयूर्या अण्डकम् 'अभिक्खणं२, अभीक्ष्णम् २ पुनः पुनः 'उव्वत्तेइ' उद्वर्तयति-अधः प्रदेशमुपरिकरोति' परियत्तेई' परिवर्तयति-पूर्व यथास्थितं तथैव पुनः करोति- आसारेइ' आसारयति यस्मिन् स्थाने स्थितमासीत ततो मनागपसारयति 'संसारेइ संसायति पुनः पुनः स्थानान्तरं प्रापयति 'चालेइ' चालयति कम्पयति 'फंदेइ' स्पन्दयति-किंचिचलितं करोति 'घटेइ' घट्टयति हस्तेन पुनः पुनः स्पृशति 'खोभेइ' क्षोभयति भूम्यां स्वल्पतरं गतं कृत्वा तत्र प्रवेशयति. अभीक्ष्णमभीक्ष्णं 'कण्णमूलंसि टिट्टियावेइ' कर्णमले टिट्टिया मति की मलिनता से वह व्याप्त हो गया। इसी बात को अंशतः सूत्रकार “किन्नं” इत्यादि पदों द्वारा स्पष्ट करते हैं क्या मुझे क्रीडा के लिये इस वन मयूरी के अंडेमें से क्रीडापोतक प्राप्त होगा अथवा नहीं होगा-इस प्रकार विचार कर (तं मऊरीअंडयं अभिक्खण २ उव्वत्तइ, परिपत्तेइ, आसारेइ, संप्तारेइ, चालेइ, फंदेइ, घटेइ, खोभेइ, अभिक्खण २ कन्नमूलंसि टिहियावेइ) उसने उस मयुरी के अंडे को बार २ नीचे से ऊँचा किया अर्थात् नीचे के प्रदेश को ऊपर किया परिवर्तित किया-जैसा रक्खा था पुनः वैसा ही रख दिया, बाद में जिस स्थान पर वह रखा था उस स्थानसे कुछ आगे सरका दिया बाद उसे और दूसरे स्थान पर रखने लगा उसे चलाया-कपित किया, कुछ २ चलाया, हाथ से उसे पुनः धर्षित किया जमीन में थोडा सा गतेकर (खडुकर) उसे उसमें रख दिया । સૂત્રકાર “જિક વગેરે પવડે સ્પષ્ટ કરે છે–શું મને કીડા માટે આ વનની હેલના ४भांथी 8131 पात४ (५२यु) मगरी नहिं मारीत पियारीन (तं मऊरीअडयं अभिक्खणं २ उव्वत्तेइ परियत्तेइ आसारेइ, संसारेइ, चालेइ फदेइ, घटे, खोभेइ, अभिक्खणं २ कन्नमूल सि टिट्टियावेइ) सापाड पुत्रे सना ઈડાને વારંવાર ઉપર નીચે કર્યું, એટલે કે ઈડાના નીચેના ભાગને ઉપર કર્યો, અને ત્યાર પછી ઈડાને પહેલાની જેમ જ મૂકી દીધું. ત્યાર બાદ તેણે ઈડું જ્યાં મૂકેલું હતું ત્યાંથી થોડું આગળ ખસેડી દીધું, આ પ્રમાણે ઈડાને તે વારંવાર એકરથાનેથી બીજા સ્થાને ખસેડવા લાગે, ચલિત અને કંપિત કરવા લાગે, ખસેડીને હાથ વડે ઈડાને સ્પર્શવા લાગ્ય, જમીનમાં નાનું સરખે ખાડે કરીને તેમાં ઈડાને મૂકી શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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