Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 715
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ३ जिनदत्त - सागरदत्तचरित्रम् ७०३ गणिकायै विपुलं जीविका जीविकायोग्यं प्रीतिदानं दत्तः दत्वा सत्कुरुतः वस्त्रादिना सत्कारं कुरुतः सम्मानयतः बचनादिना संमानं कुरुतः सत्कृत्य संमान्य देवदत्ताया गृहात्प्रतिनिष्क्रमतः निस्सरतः, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव स्वकानि स्वानि गृहाणि तत्रैवोपागच्छतः उपागत्य 'सक्रम्मसंपउत्ता' स्वकर्मसंप्रयुक्तौ जातौ चाप्यास्ताम् स्वस्व व्यापारादिकार्य करणे सावधानौ जातावित्यर्थः ॥ सु. १३॥ मूलम् - तत्थणं जे से सागरदत्त पुत्ते सत्थवाहदारए सेणं कल्लं जाव जलते जेणेव से वणमऊरी अंडए तेणेव उपागच्छइ उवागच्छित्ता तंसि मऊरी अंडयंसि संकिते कंखिते वितिभिच्छासमावन्ने भेय समावन्ने कलुससमावन्ने किन्नं ममं एत्थ किलावणमऊरी पोयए (उवागच्छिशा देवदशाए सिंह अणुपचिसंति) आकर वे देवदत्ता के घर के भीतर --(अणुपविसित्ता देवदत्ताय गणियाए विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयंति) भीतर जाकर उन दोनोंने देवदत्ता गणिका के लिये विपुल मात्रा में जीविका के योग्य प्रीतिदान दिया । ( दलयित्ता सक्कारेंति, सक्कारिता सम्मार्णेति, सम्माणित्ता देवदत्ताए गिहाओ पडिनिक्खमं ति) देकर फिर उस का वस्त्रादि द्वारा सत्कार किया, सत्कार कर के मीठे २ वचनों द्वारा उसका सन्मान किया - सन्मान कर बाद में वे उस देवदत्ता के घर से बाहर निकले ( पडिनिक्खमित्ता जेणेव सयाई २ गिहाई तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता सकम्मसंपउत्ता जाया यावि होत्था) निकलकर अपने अपने घर पहुँचे - और जाकर अपने २ व्यापार आदि कार्य करने में लग गये ॥ सु. १३ ॥ हिं अणुपविसंति) घरमा प्रवेशीन ते मनेो देवदत्ता गणिअने भविष्ठा भाटे पुण्ड प्रभाशुभां उचित प्रीतिहान आयु. ( दलयित्ता सक्कारेति, सक्कारिता, सम्माति, सम्माणित्ता देवदत्ताए गिहाओ पडितिक्खमंति) प्रीतिहान अर्थीने તે ગણિકાને વસ્ત્રો વગેરે આપીને તેનેા સત્કાર કર્યો, સત્કાર કરીને મધુરવાણી વડે તેનુ સન્માન કર્યુ અને સન્માન કરીને તેઓ દેવદત્તા ગણિકાના ઘેરથી બહાર નીકળ્યા (डिनिक्खमित्ता जेणेव सयाइ २ गिहाई तेणेव उबागच्छंति-उवागच्छित्ता सम्म संपत्ता जायायाविहोत्था) नीणीने तेथे पोतपोताने घेर पहय्या अने પહોંચીને પાતપેાતાના વેપાર વગેરે કામેામાં પરોવાઈ ગયા. રાજૂ, ૧૩ા શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764