Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 708
________________ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे स्थितैर्बहिःस्था दृश्यन्ते तादृशेषु च 'कुसुमघरएसु' कुसुमगृहकेषु-पुष्पगृहकेषु, इत्यादिषु, स्थानेषु 'उज्जाणसिरिं' उद्यानश्रियं, उपवनस्य शोभा सुखं च 'पञ्चणु भवमाणा' प्रत्यनुभवन्तौ देवदत्तया साईमनुभवन्तौ विहरतः विचरतः ।सू. १०॥ मूलमू--तए णं ते सत्थवाह दारया जेणेव से माल्या कच्छए तेणेव पहारेत्थ गमणाए, तएणं सा वणमऊरी ते सत्थहदारए एजमाणे पास्इ पासित्ता भीया तत्था तसिया उव्विगा पलाया महया महया सदणं केकारवं विणिम्मुयमाणी २ मालुयाकच्छाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता एगति रुक्खडालयंसि ठिच्चा ते सत्थ वाहदारए मालुयाकच्छयं च अणिमिसाए दिट्टिए पेहमाणी २ चिट्ठइ ॥सू० ११॥ __टीका-'तएणं ते' इत्यादि--ततस्तदनन्तरं खलु तदुधानशोभासुखानुभवानन्तरं तौ सार्थवाहदारको य व स मालुकाकक्षकः पूर्वोक्त एका. स्थिकफलानां वृक्षविशेषाणां काननं वर्तते तत्रैव 'पहारेत्थ गमणाए' प्राधार यतां मनुष्य बाहिर रहे हुए मनुष्यों की दृष्टि में न आवे किन्तु बाहिर मनुष्य उन भीतर में रहे हए मनुष्यों को दिखलाई पड़ते रहे ऐसे घरों में-(कुसुमघरएस य) पुष्प गृहों (उजाणसिरिं पचणुभवमाणा विहरंति) देवदत्ता के साथ २ उद्यानश्री का निरीक्षण करता हुआ आनंद भोग करते हुए विचरते रहे। सूत्र १० ॥ __ 'तएणं ते सत्थवाहदारगा' इत्यादि। टीकार्थ--(तएणं) इसके बाद (ते सत्यवाहदारगा) वे दोनों सार्थवाह दारक (जेणेव मालुयाकच्छए) जहां वह मालुका कच्छ था(तेणेव पहारेत्थ गमणाए) उस ओर जानेके लिये उत्कंठित हुए (तएणं सा वणमऊरी ते એવા ઘરમાં કે જેમની અંદર બેઠેલા માણસને સારી પેઠે જઈ શકે પણ બહારના भाणुस। मरना भाणसाने नन , (कुसुमघरएमु य) यु०५ मां, (उज्जा . णसिरिं पञ्चणुभवमाणा विहरति) धाननी शाला onता हेवहत्तानी साथे सुम અનુભવતા વિચરતા રહ્યા. પસૂત્ર ૧૦ 'तएणं ते सत्थवाह-दारगा' इत्यादि ! टी--(त एणं) त्या२०१६ (ते सत्थवाह दारगा)मने सार्थवाड पुत्र! (जेणेचसे मालुया कच्छए) 2 त२३ भादुरी ४२७ डतो. (तेणेव पहारेत्थ गमणाए) શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764