Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 685
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ३. मयूराण्डवर्णनम् ६७३ नगर्या बहिरुत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे सुभूमिभागं नामोद्यानमासीत् तत् कीदृशमित्याह--'सव्योउयपुप्फफलसमिद्धे' सर्वत्तकपुष्पफलसमृद्धम्-- वसन्तादिवऋतुजनितपुष्पफलादिसम्पन्नमू, सुरम्यम्-अविशयरमणीयं, नन्दनवनवत् 'सुहसुरभिसीयलच्छायाए' शुभसुरभि-शीतलछायया-तत्र 'सुह' शुभा-शोभना 'सुरभि' मुगन्धिः 'मीयलं' शीतला च या छाया तया 'समणुबद्धे' समनुबद्धम्-युक्तम्, तस्य खलु सुभूभिभागस्योद्यानस्य 'उत्तरओ' उत्तरतः-उत्तरदिशायामित्यर्थः 'एग देसंमि, एकदेशे-एकस्मिन् ‘एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं इत्यादि । टीकार्थ-( जंबू ! एवं खलु ) हे जंबू ! तुम्हारे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार है-( तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था ) उस कालमें उस समयमें चंपा नामकी नगरी थी (वन्नओ) इसका वर्णन पहिले किया जा चुका है। (तीसेणं चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए सुभूमिभाए नामं उजाणे होत्था) उस चंपा नगरो के बाहर ईशान कोणमे सुभूमिभाग नामका उद्यान था (सबोउय पुष्फफ लममिद्धे सुरम्मे नदणवणे इव) यह समस्त ऋतुओं की शोभा से समृद्ध था-आर्थात् समस्त ऋतु संबन्धी फलपुष्पादिकों से यह सम्पन्न था. अतिशय रमणीय था। नंदनवन के समान यह (सुहसुरभि सीयलच्छायाए समणुबद्धे ) शुभ, सुरभि और शीतल छायासे युक्त था । (तस्स णं सुभूमिभागस्स उजाणस्स उत्तरओ एगदेसंमि मालुयाकच्छए वन्नओ) उस मुभूमिभाग उद्यान की __ 'एवं खलु जबू ! तेणं कालेण' इत्यादि ॥ टी--(जबू ! एवं खल) ८ ! तभा प्रश्नमा वाम मा प्रभारी छ-(तेणकालेण तेण समएण चंपा नाम नयरी होत्था) ते आणे भने ते समये या नामे नगरी ती. (वन्नओ) ते नारीनु न प ४२वामी माव्यु छे. तीसेणं चंाए नयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए सुभूमिभाए नामं उज्जाणे होत्था) ते यानानी पा२ शान मां सुभूमिमा नामे Gधान ! (सव्वोउयपुप्फफलसमिद्धे सुरम्मे नंदणवणे इव) तेधान समस्त ऋतुमानी શેભાથી યુક્ત હતું એટલે કે બધી ઋતુઓનાં ફળે અને પુષ્પથી તે સંપન્ન હતું भने ते म ०४ २भीय हेतु नन बननी भ ते (मुहसुरभिसीयलच्छायाए समणुबद्ध) शुभ सुरलि भने शीत छायावाणु तु. (तस्सण सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स उत्तरओ एगदेस मि मालुयाकच्छए वन्नओ) ते सुभूमि लाn Gधाननी ઉત્તર દિશામાં એક તરફ માલુકા કચ્છનામે વન હતું. તે માલુકા કચ્છનું વર્ણન શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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