Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. ३. जिनदत्त - सागरदत्तचरित्रम्
६७५
संरक्षन्ती रक्षां कुर्वन्ती, 'संगोवेमाणी' संगोपायन्ती - उपद्रवतः परिरक्षन्ती 'संट्ठेमाणी' सम्बेयन्ती पोषयन्ती समन्तात् पक्षैरानृत्य वर्धयन्ती विहरति । सू २
मूलम् - तत्थणं चंपाए नयरीए दुवे सत्थवाहदारगा परि वसंति तं जहा - जिणदत्तपुते य सागरदत्तपुत्ते य सह जायया सहवडि यया सह पंसुकीलियया सहदारदरिसी अन्नमन्नमणुरतया अन्नमन्नमणुव्वयया अन्नमन्नच्छंदाणुवत्तया अन्नमन्नहियइच्छियकारया अन्नमसुसु कच्चाई करणिजाई पच्चणुभवमाणा विहरंति. ॥ सू. ३ ॥ 'तत्थणं' इत्यादि,
टीका -- तत्र खलु चम्पायां नगर्यौ द्वौ सार्थवाहदारकौ परिवसतः तद्यथा - जिनदत्तपुत्रश्च सागरदत्तपुत्रश्च, तौ विशेषयति 'सहजायया' सहजातकौ - समानजन्मकालत्वात् 'सह वडियया' सहवर्द्धितकौ सार्धमेव दृद्धिमुपगतत्वात् 'सहपंकीलियया' सह पांशुक्रीडितको समानकाले धूली क्रीडाकरत्वात् 'सहदार रिसी' सहद्वारदर्शिनौ सह द्वारदर्शिनौ सह सार्धमेव परस्परं गृहयोद्वारे दृष्टुं शीलं ययोः तौ तथा-सहदारदर्शिनौ - इति छाया पक्षे समानकालकृतविवाहौ 'अन्नमन्नमणुरयया' अन्योऽन्यमनुरक्तकौ -- परकर रक्षा की - उपद्रवों से उन्हें बचाया चारों तरफ से उन्हें पंखों से आवृत कर उनका पोषण किया । सू. २ ॥
टीकार्थ - (तत्थ णं चंपाए नगरीए ) उस चंपा नामकी नगरी में ( दुवे सत्थवाहदारगा परिवसंति) दो सार्थवाह दारक रहते थे । ( तंजहा ) वे ये है- ( जिणदत्तपुते य सागरदत्तपुते य ) एक जिनदत्त का पुत्र दूसरा सागरदन का पुत्र ( सहजायया सहवडियया सहपुंसकीलियया सहदारदरिसी अन्नमन्नमणुरत्तया अण्णमन्नमणुव्वयया अण्णमन्नच्छंदाणुवत्तया
ઢાંકીને તેમની રક્ષા કરી. ઉપદ્રવેાથી ઇંડાંને બચાવ્યાં; ચામેર ઈંડાને પાંખેાથી ઢાંકીને– યાવૃત્ત કરીને તેનુ પોષણ કર્યું. પ્રસૂત્ર રા
'तत्थण' चपाए नयरीए' इत्यादि ।
टीकार्थ - - (तत्थण चंपाए नगरीए ) ते यथा नामे नगरीमां (दुवे सत्थबाहदारगा परिवसति) में सार्थवाह हारी (पुत्रो) रहेता हुता. (तं जहा) तेथे या प्रमाणे छे-(जिणदत्तपुत्ते य सागरदत्तपुत्ते य) मे निनदृत्तन पुत्र मने जीले सागरहत्तनो पुत्र (सह जायया सह वडियया सह पुंसकीलियया सहदारदरिसी अन्नमन्नमणुरत्तया अण्णमन्नमणुन्त्रयया अण्णमन्नच्छंदाणुव
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
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