Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 691
________________ अनगारधममृतवर्षिणीटीका अ. ३. जिनदत्त-सागरदत्तवरित्रम् ६७९ टीक--'तत्थणं इत्यादि तत्र खलु चम्पायां नगर्या देवदत्ता नाम गणिका परिवसति, सा च आढया यावद् अपरिभूता 'च उसटिकलापंडिया' चतुष्पष्टि कला पण्डिता-चतुष्पष्टिसंख्यकाः कलाः नृत्यादि फलवृष्टि पर्यन्ताः तत्र पण्डिता-निपुणा 'चउहिणि गुणोववेया' चतुष्पष्टिगणिकागुणोपवेता चतुष्पष्टिसंख्यकाः गणिकागुणाः शृङ्गारचेष्टारूपा: तैरुपपेता-युक्ता ‘अउणतीसं विसेसे रममाणी' एकोनत्रिंशद् विशेषान् रममाणा-एकोनत्रिंशद्विशेषान् कामशास्त्रप्रसिद्धान् अधिकृत्य रममाणाविलासं कुर्वाणा 'एकवीसरइगुणप्पहाणा' एकविंशति रतिगुणप्रधाना एक विंशति सख्यकाः रतिगुणाः. ते प्रधाना 'बत्तीसपुरिसोवयारकुसला' द्वात्रिशत् पुरुषोपचारकुशला द्वात्रिंशत् सख्यकाः पुरुषोपचाराः कामशास्त्रपसिखाम्तेषु कुशला-दक्षा ‘णवंगसुत्तपडिबोहिया' नवाङ्गमृप्त पतिबोधितानि-- 'तत्थ ण चंपाए नयरीए' इत्यादि ॥ टीकार्थ-(तत्थण चंपाए नयरीए) उसी चंपा नगरीमें (देवदत्ता नाम गणिया परिवसइ) देवदत्ता नाम की एक गणिका रहती थी। (अजा अपरिभूया चउसटिकलापंडिया, चउसंहिगणियागुणोव वेया अउणतीसं विसेसे रममाणी) यह धन संपन्न थी। यावत अपरिभूत थी-कोई इसका तिरस्कार नहीं कर सकता था। नृत्यादि से लेकर फलदृष्टि पर्यत की ६४ कलाओं में यह निपुण थी। श्रृंगार चेष्टारूप जो ६४ गणिकागुण होते है उनसे यह भरपूर थी । कामशास्त्र प्रसिद्ध २५ विशेषों को लक्ष्य में रख कर यह विलास करती थी। (एकवीसरइगुणप्पहाणा) २१ प्रकार के रति गुणों से यह समन्वित थी । (बत्तीसपुरिसोवयारकुसला) ३२ प्रकारके कामशास्त्र प्रसिद्ध पुरुषोपचारों में यह कुशल थी। (णवंगसुत्तपडियोहिया) ___ 'तत्थणं चंपाए नयरोए' इत्यादि । टार्थ:-(तत्थणं चपाए नयरीए) ते या नगरीमा देवदत्ता नाम गणिया परियसइ) हेपत्ता नाभे गरि २७ती ती. (अढाजाव अपरिभृया चउसटिकलापडिया, चउसद्विगणियागुणाववेया अउणतीस विसेसे रममाणी) તે ધન સંપન્ન હતી. અપરિભૂત હતી–એટલે કે કોઈપણ વ્યક્તિની એવી તાકાત ન હતી કે તેને તિરસ્કાર કરી શકે. નૃત્ય વગેરેથી માંડીને ફળવૃષ્ટિ સુધીની ચોસઠ કળાઓમાં તે કુશળ હતી. શૃંગારની ચેષ્ટારૂપે જે ચોસઠ ગણિકા ગુણ હોય છે, તેબધા ગુણો તેમાં વિદ્યમાન હતા. કામશાસ્ત્રમાં પ્રસિદ્ધ ઓગણત્રીસ (૨૯) વિશેષને લક્ષ્યમાં રાખીને તે વિલાસ કરતી હતી. (एक्कवीसरइगुणप्पहाणा) मेवीस andal तिथी ते युक्त हती. (बत्तीस पुरिसोवयारकुसला) मत्रीस (३२) तना अभावमा प्रसिद्ध पुरुष। पयारीमा શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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