Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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___ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे चलनक्रियारहितः सकलाङ्गक्रियाशून्यत्वात् 'ठाणुखंडे' स्थाणुखण्ड:-साधदिनद्वयोर्वावस्थानेन स्तम्भितगात्रः सन् त्वमेवं चिन्तितवान्-शशको गतो मत्परिवारोऽपि गतस्तदहमपि 'वेगेण वेगेन शीघ्रगत्या स्वपरिवारैः सहसंमिलनाय विप्पसरिस्सामि' विप्रसारिष्यामि गमिष्यामि 'त्तिक' इति कृत्वाइति चित्ते निश्चित्य 'पाए' पादं 'पसारेमाणे' प्रसारयन् 'विजहतेविचं' विद्युद्धत इव-विद्युत्प्रहारेण हत-इव 'रययगिरिपब्भारे' रजतगिरिप्राग्भारः= वैतादयगिरेः प्राग्भार: ईषदवनतखण्डम् इव धरणितले सवंगेहिय' सर्वाड्रेश्व-सकलावयवै, 'सन्निवइए' सन्निपतितः खलु हे मेघ ! तव शरीरे वेदना प्रादुर्भूता प्रकटिता यावत् त्वं 'दाहवकंतिए' दाहव्युत्क्रान्तिकः दाहो-ज्वरो व्युत्क्रान्तः% उत्पन्नो यस्य स दाहव्युत्क्रान्तः स एव दाहव्युत्क्रान्तिकः दाह ज्वरयुक्तःसन् विहरसि । ततः त्वं हे मेघ !ताम् उज्वलां यावत् दुरध्यासां नहीं रहा। इस प्रकार आत्मोत्साहवर्जित हुए तुम ( ठाणुखंडेवा) स्थाणु खंड की तरह (अचंकमणो) हलन चलन क्रिया से भी रहित हो गये। अतः सकलाङ्ग, क्रिया शून्य होने के कारण तुम्हारा शरीर ढाइ दिन तक खडे रहने से स्तंभित हो गया। (वेगेण विप्पसरिस्सामित्ति कटु पाए पसारे माणे विज्जुहए विव रयगिरिपब्भारे धरणितलंसि सन्चंगेहिय सन्निवइए ) इस समय तुमने ऐसा विचार किया कि मैं यहां से शीघ्र भागकर अपने परिवार के साथ मिलने के लिये चला जा सो इस विचार से ज्योंही तुमने अपना चरण पसारा कि उसी समय विद्युत् पहारसे आहत वैताढयगिरि के खंड की तरह तुम धरणीतल पर अपने समस्त अंगों के साथ धडाम से गिर पडे । ( त एणं तव मेहा ! सरीरगसि वेयणा पाउन्भूया) इस से हे मेघ ! तुम्हारे शरीर में बेहद वेदना प्रकट हइ। ( उज्जला जाव दाहवक्कंतिए यावि विहरसि) वह वेदना तीव्र होने से सहित था तमे ( ठाणुखंडेवा) सासनी म ( अचंकमणो) हासवा यासवानी ક્રિયાથી પણ રહિત થઈ ગયા. તેથી તમારાં બધાં અંગો કિયા શૂન્ય થઈ ને પરિ ણામે અઢી દિવસ એટલે કે ૬૦ કલાક સુધી ઊભા રહેવાથી ખંભિત થઈ ગયાં. ( वेगेण विप्पसरिस्सामित्ति कटु पाए पसारे माणे विज्जुहए विव रयय. गिरिपब्भारे धरणितलंसि सव्वंगेहिय सन्निवइए) ते १मते तभने पियार ઉદ્ભવ્યું કે હું સત્વરે અહીંથી મારા પરિવારની પાસે જાઉં. આ વિચારથી તમે પિતાનો પગ ઉપાડે કે તરત જ વીજળીના આઘાતથી વૈતાઢય પર્વતના ખંડની
म यम अशन पृथ्वी ५२ ५ गया. (तएणं तव मेहा ! सरीरगंसि वेयणा पाउभया)ह मेध! तनाथी तभा शरीरमा मतिशय वेहना थवा भांडी. (उजला
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧