Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 673
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २. धन्यस्य मोक्षवर्णनम् मर्यादा विचरन्तः 'गामाणुगाम' ग्रामानुग्रामम् = एक ग्रामादव्यवधानेनान्यग्रामं 'दूइजमाणा' द्रवन्तः = गच्छन्तः यत्रैव राजगृहं नगरं यत्रैव गुणशिलकं 'चेइए' चैत्यम्=उद्यानं तत्रैवोपागच्छन्ति, उपागत्य ' अहापडिवं' यथामतिरूपं=यथायोग्यं=साधुमर्यादार्हम् 'उग्गहं' अवग्रह = वमतेराज्ञाम् उग्गिहिता' अवगृह्य = वनपालसकाशान्मार्गयित्वा सयमेन तपसाऽऽत्मानं 'भावेमाणा' भावयन्तः = वासयन्तो विहरन्ति = तिष्ठन्ति । परिषन्निर्गता । धर्मः कथितः । ततः खलु तस्य धन्यस्य सार्थवाहस्य बहुजनस्यान्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य अयमेतद्रूप आध्यात्मिको यावत् समुदपद्यत एव खलु स्थविरा भगवन्तो पुव्वाणुपुवि चरमाणा गामाणुगाम दुइज्जमाणा जेणेव रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छति ) जो कि विशुद्ध मातृवंशवाले थे यावत् तीर्थकरों की परम्परा के अनुसार विहार करते थे । वे एक ग्राम से दूसरें ग्राम में विहार करते हुए जहां राजगृह नगर और गुणशिलक चैत्य था वहां आये (उवागच्छित्ता अहापडिरूवं उग्गहं उग्गिहित्ता संजमेण तवसा अप्पा भावेमाणाविहरंति) वहां आकर वे साधुजन की मर्यादा के अनुसार वसति की आज्ञा वहां के वनपालक से मांग कर संयम और तपसे अपनी आत्मा को भावित करते हुए ठहर गये । (परिसा निग्गया, धम्मो कहिओ तरणं तस्स णस्स सत्यवास्स बहुजणस्स अंतिए एयमहं सोच्चा णिसम्म इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुपज्जित्था ) राजगृह नगर से परिषद यहां आई- भगवान् ने उसे धर्मकी देशना दी। इसके बाद उस बन्य सार्थवाह ने अनेक जनों के मुख से इस अर्थ - भगवदागमन रूप समाचार - को सुनकर उसे हृदय में अवधारित पुवि चरमाणा गामाणुगामं दूइजमाणा जेणेव गुणसिलए चेइए तेणेव उवागच्छति) भेो विशुद्ध मानवंशना हता, अने तीर्थपुरोनी परंपरागत પ્રથા મુજબ વિહાર કરતા હતા તેઓ એક ગામથી બીજે ગામ વિહાર કરતાં જયાં राभ्गृह नगर भने गुए। शिक्षक चैत्य हुतु त्यां खाव्या. ( उवागच्छित्ता अहा पडिवं उग्गहं उग्गन्हित्ता संजमेणं तवसा अपाण भावेमाणा विहरति ) ત્યાં આવીને તેવા સાધુજનેાચિત મર્યાદાને અનુસરતાં ત્યાંના વન પાલકની પાસેથી વાસ કરવાની આજ્ઞા મેળવીને તપ અને સંયમથી પેાતાના આત્માને ભાવિક કરતાં त्यां शाया. (परिसा निग्गया धम्मो कहिओ तएण तस्स घण्णस्स सत्थवाहस्स बहुजणस्स अतिए एवम सोच्चा जिसम्म इमेघारूवे अज्झत्थिए जाव समुपज्जित्था ) रामगृह नगरथी त्यां परिषद् मेडी था. लगवाने परिषहूने सोधी એટલે કે ધમ દેશના આપી. ત્યાર પછી ધન્ય સાવાર્હ ઘણા માણસાના માંઢથી ભગવાનને પધારવાના સમાચાર સાંભળીને, તેને હૃદયમાં અવરિત કરતાં તેના શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧ ६६१

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