Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 678
________________ ज्ञाताधर्मकथासूत्रे मल्लाल कारविभूसे' व्यपगतस्नानोन्मदनपुष्पगन्धमाल्यालङ्कारविभूपः, तत्र'ववगय' व्यपगता परित्यक्ता-'हाणुम्मदण' स्नानम्-देशतः सर्वतो वा शरीर संस्काररूपम् उन्मर्दन तैलादिभिः शरीरसंमर्दनम् 'पुप्फ' पुष्पाणि-जपादिकुसुमानि. 'मल्ल' माल्यं-पुष्पमाला 'अलंकार' अलङ्काराणिमणिमुक्ताद्याभणानि, तैविभूषा-शरीरशोभा येन स तथोक्तः-परित्यक्तस्नानादिसर्वश्रृङ्गार शोभा इत्यर्थः अस्यौदारिकशरीरस्य 'वण्णहेउं वा' वर्णहेत वे=कान्त्याद्यर्थम्, 'ख्वहेउं वा' रूपहेतवे आकृति सौन्दर्याथम्, 'विसयहेउं वा' विषयभोगार्थमशनं पानं खायं स्वाधम्, एतद्रूपं चतुर्विधमाहारं 'नो' न 'आहारेइ' आह. रति, औदारिकशरीरस्य वर्णादिनिमित्तमाहारं न करोतीति भावः 'नन्नत्थणाणदंसणचरित्ताणं वहणयाए' नान्यत्र ज्ञानदर्शनचरित्राणां वहनतायाः ज्ञानादिरत्नत्रयाराधनाया अन्यत्र न, ज्ञानाचाराधनं विहायाहारं न करोति किन्तु संयमयात्रानिर्वाहार्थमेव करोतीति तात्पर्यम् । सः खलु निर्ग्रन्थो वा निग्रन्थी वा इहलोके चैव बहूनां श्रमणानां श्रमणीनां श्रावकाणां च 'अच्च है वे अ चार्य उपाध्याय के समीप आगारअवस्था से अनगार अवस्था धारण कर स्नान, उन्मर्दन, पुष्प, गन्ध, माला, अलंकार इन से शारीरिक शोभा करने का परित्याग कर (इमस्स ओरालियसरीरस्स नो धन्नहेउ वा रूबहेउ वा विस यहेउ वा असणं, पाणं, खाइम. साइमं आहारमाहारेइ नन्नस्थ णाणदंसण चारित्ताणं वहणयाए) इस औदारिक शरीर की कांति के निमित्त, आकृति की सुन्दरता के निमित्त, अथवा विषयभोगों को भोगने के निमित्त अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य रूप चतुर्विध आहार नहीं करते हैं किन्तु ज्ञान दर्शन और चारित्र को वहन करते के लिये करते हैं (से णं इहलोएचेव बहूणं समणाणं समणोणं साव પાસેથી આગાર અવસ્થામાંથી અનગાર અવસ્થા ધારણ કરીને સ્નાન, ઉન્મન, પુષ્પ न्धमा घरेणी वगेरेथा शरीरने शारj छोडीन (इमस्स ओरालियसरीरस्स नो वन्नहेवा बहेउ वा विसय हे उ वा अतणं. पाणं, खाइम, साइमं आहारमाहारेइ नन्नत्थ णाणदंसणचारित्ताणं वहणयाए) આ ઔદારિક સાપને કાંતિવાળુ બનાવવા માટે. આકૃતિને સુંદર બનાવવા માટે અથવા વિષય ભેગો ભેગવવા માટે અશન, પાન, ખાદ્ય અને સ્વાદરૂપ આ જાતના આહાર કરતા નથી, પણ જ્ઞાન, દર્શન અને ચારિત્ર્યની સિદ્ધિ માટેજ જેઓ આહાર વગેરે કરે છે, (सेणं इहलोए चेव बहूण समणाणं समणीण सावगाणय साविगाण य अच्चणिज्जे શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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