Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 642
________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे महता चारकशाला= कारागारगृहं तत्रापागच्छन्ति, उपागत्य तस्य ' हडि बंधणं' हाडबन्धनं=काष्ठ विशेषयन्धनं 'बेडी' इति भाषापसिद्धे हडियन्त्रे बन्धन कुर्वन्ति कृत्वा भतपाणनिरोह' भक्तपाननिरोधम्=अशनपानप्रतिषेध कुर्वन्ति कृत्वा 'तिसंझ' त्रिसन्ध्यं = प्रातर्मध्याह्नसायंस्वरूपे कालत्रये कशामहारांश्च यावद् निपातयन्तो निपातयन्तो विहरन्ति । 'तएणं' ततः खलु इतः स धन्यः सार्थवाहो मित्रज्ञातिनिजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनेन सार्द्धं रुदन यावद् विलपन देवदत्तस्य दारकस्य शरीरस्य महया इडीसक्कारसमुद एणं' ऋद्धिसत्कार समुदयेन = महता = विस्तीर्णेन ऋद्ध्या = वस्त्रादि सामन्द्रा सत्कारः = मृतशरीरसम्मानं तेन समुदयेन= जनसङ्गेन च 'नीहरणं' निर्हरणं= शवस्य श्मशानभूमिनयनं करोति कृत्वा मृतकशरीरदहनक्रियानन्तरं बहूनि कारागार (कैदखाना) जहां था। वहां गये उवागच्छित्ता हडिबंधणं करें ति) वहां जाकर वे उसे हडियत्र में बांध देते हैं । (करिता भत्तपाणनिरोहं करेति करिता तिसंझं कसप्पहारेय जाब निवाएमाणा २ विहरंति) बाद में उसे खानापीना देना बंध कर देते हैं । और तीनों संध्या के समय ( सुबह दो पहर तथा सांयकाल ) उसे कोडे आदि के प्रहारों से जर्जरित शरीर कर देतें हैं । (तरण से धन्ने सत्थवाहे मित्तना नियगसपण संबधिपरियणेणं सद्भि रोयमाणे जाव विलवमाणे देवदि तम् दारगस्स सरीरस्स महया इढिसक्कारसमुदपणं नीहरणं करेइ ) इसके बाद उस धन्य सार्थवाहने मित्र. ज्ञाति, निजक स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों से युक्त होकर रोते हुए यावत् विलाप करते हुए अपने देवदत्त दारक के शरीरकी बड़े भारी उत्सव के साथ अर्थी निकाली । चारगामाला तेणामेव उवागच्छति) तेथे भेस तरइ गया. ( उवागछित्ता हबिधण करेंति) त्यां न्हाने तेथेोग्ये थोरने डुडियंत्र (लाउडानी मेडी) भा मंधन यो 'करिता भन्नपाणनिरोह करेति करिता तिसंझ कसष्पहारे य जाब निवाएमाणा २ विहरति ' त्यार બાદ તેઓ ચોરને ખાવા પીવાની બધી વસ્તુએ આપવાની અદ્ય કરે છે અને સવાર, બપોર અને સાંજ ત્રણે સંધ્યાના સમયે કારડા વગેરેના પ્રહારેથી તેના શરીરને શિથિલ અને જર્જરિત उरी नाये छे. (त एणं से धन्ने सत्थवाहे मिणेनाइनियगसयण संबंधिपरियसद्धिं रोयमाणे जाव चिलवमाणे देवदिन्नस दारगस्स सरीरस्स महया डकार समुदणं नीहरणं करेइ) त्यार पछी धन्य सार्थवाहे भित्र, ज्ञाति, નિજક, સ્વજન, સંબંધી અને પરજનાની સાથે મળીને રડતાં રડતા અને કરુણ ક્ર ંદન કરતાં બાળક દેવદત્તના શરીરની બહુ મોટા ઉત્સવ રૂપે શ્મશાનયાત્રા કાઢી. શ્મશા ६३० શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧

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