Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 654
________________ ६४२ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे विपुलाद अशनपान खाद्यस्वाद्यात् संविभागम् अंशरूपेण पृथक्करणं कुर्याम् तदाऽहं युष्माभिः सा मेकान्तमपक्रमामि । ततः खलु-तदनु स धन्यः सार्थवाहो विजयमेवमवादीत-अहं खलु तुभ्यं तस्माद् विपुलाद् अशनपानखाद्य-स्वाद्यात संविभागं करिष्यामि । ततः खलु स विजयो धन्यस्य सार्थवाहस्यैतम्संविभागस्वीकरणरूपमर्थ 'पडिसुणेई' प्रतिश्रृणोति स्वीकरोति । ततः खलुअशनादि संविभागस्वीकारानन्तरं स विजयो धन्येन साईमेकान्तमवक्रामति, श्रेष्ठी उच्चारप्रस्रवणे परिष्ठापयति, परिष्ठाप्य 'आयते' आचमितः कृतशुद्धिकः 'चोक्खे' चोक्षः स्वच्छः ‘परमसुइभूए' परमशुचीभूतः प्रक्षालित. मुखहस्तः सन् तदेव स्थानम् 'उवसंकमित्ता' उपसंक्रम्य-संप्राप्य 'विहरइ' विहरति-तिष्ठति । ततः खलु इतश्च सा भद्रा 'कल्ल' कल्ये-द्वितीयदिवसे अशनादिरूप चतुर्विध आहार में से विभक्त मुझे खानेको दो अर्थात्-उसमें मेरा विभाग रक्खो-तो मैं तुम्हारे साथ एकान्त में चलता हूं। (तएण से धण्णे सन्थवाहे विजयं एवं वयासी-अहण्णं तुभं तो विपुलाओ असण४ संविभागं करिस्सामि तएण से विजए धण्णस्स सत्यवाहस्स एयम पडिसुणेइ) तब धन्य सार्थवाहने उस विजय चौर से इस प्रकार कहा-हां मैं तेरे लिये उस विपुल आहार में से विभाग कर दंगा। इसके बाद उस विजयने धन्य सार्थवाह के इस अर्थ को-कहने को मानलिया-(तएणं से विजए धणणं सद्धिं एगंते अवक्कमइ उच्चारपासवणं परिहवेइ) बाद में वह विजय धन्य सार्थवाह के साथ एकान्त में गया-वहां जाकर सेठ धन्यने उच्चार और प्रस्रवण की परिष्ठापन की। (परिट्ठवित्ता आयंते चोक्खे परममुईभूए तमेव ठाण उवसंकमित्ता विहरइ) परिष्ठापना के बाद आचमन कर धन्यसाथैवाह જે તમે હવે તમારા માટે આવતા અશન, પાન, વગેરે ચાર જાતના આહારમાંથી હિસ્સે મને પણ આપવાની બાંહેધરી આપો તે હું તમારી સાથે तभा मावा तैयार छु. (तएण से धण्णे सत्थवाहे विजय एवं वयासी अहणं तुम तओ विपुलाओ असण ४ संविभाग करिस्सामि तएण से विजए धण्णम्स सत्यवाहस्स एयम४ पडिमुणेइ) सेना वाममा धन्य સાર્થવાહે વિજય ચોરને કહ્યું--સારું અશન, પાન, વગેરે ચાર જાતના વિપુલ આહારમાંથી તને પણ ભાગ આપીશ. ત્યાર પછી વિજય ચોરે ધન્ય સાર્થવાહની वात स्वारी (तएण से विजए धणेण सद्धि एगते अवक्कमेइ उच्चारपासवण परिट्टवेइ) मने ते धन्य साथ वाडनी साथे मेतिमा गयो. त्यां ने धन्य सार्थ वाई या२ मने प्रस्त्रवानी ५२०४॥५॥ ४१. (परिहवित्ता आयते चोक्खे परमसुईभूए तमेव ठाण उवसंकमित्ता विहरइ) प२ि०४1411 पछी ધન્ય સાર્થવાહે શુદ્ધી કરી અને આ પ્રમાણે તેઓ શુદ્ધ અને નિર્મળ થઈને ફરી पोताना स्थाने भावी गया.(तरण सा भद्दा कल्लं जाव जलते विउल असण શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧

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