Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ. २. धन्यस्य विजयेनसहहडिबन्धनादिकम् ६५१ दिरूणाऽऽभ्यन्तरपरिषद् धन्यं सार्थवाहमेजमनि पश्यति, दृष्ट्वा 'आसणाओ' श्रासनात् स्वस्वोपवेशनस्थानात् 'अब्भुट्टेइ' अभ्युनिष्ठाति-संमुखमूर्वी भवति, अभ्युत्थाय 'कंठाकंठियं' कण्ठाकण्ठिकंकण्ठे च कण्ठे च गृहीत्वा यत्पवतन तत् कण्ठद्वयसंमिलनपूर्वकम् 'अवयासिय' आश्लिष्य= समालिङ्गय 'चाहप्पमोक्खणं' बाष्पप्रमोक्षण=चिरवियुक्तपियसमागमजन्यहर्षाश्रमोचनं करोति । ततः खलु तदनु स धन्यः सार्थकाहो यत्रैव भद्रा भार्या तत्रैवोपागच्छति । ततः खलु सा भद्रा धन्य सार्थवाहम् 'एजमाण' एजमान-स्वसमीपे समायातं पश्यति, दृष्ट्वा नो आदिगते, नो परिजानाति, (पासिता) तब देखकर (आसणाओ अब्भुट्टे अब्भुद्वित्ता कंठाकठियं अवयासिय वाहप्पमोवखणं करेंति) वे अपने २ अधिष्ठित स्थान से उठ बैठे
और उठकर परस्पर मे गले से गला लगाकर मिले । सबने उससे भेट की। आलिङ्गनकिया। तथा बहत दिनों के बाद मिलने से उन लोगों ने आनंद जन्य हर्षाओं का मोचन भी किया अर्थात हर्षाथ बरसाये (तएणं से धण्णे सत्यवाहे जेणेव भद्दा भारिया, तेणेव उवागच्छइ) इसके बाद वह धन्य सार्थवाह जहां भद्रा सार्थवाही थी वहां गया (तएणं सा भद्दा धणं सत्थवाहं पुज्जमाणं पासइ, पासित्ता णो आढाइ. नो परियाणाइ, नो सक्कारेड, नो सम्माणेइ, णो अब्भुट्टेइ. नो सरीरकुसलं पुच्छइ) भद्रा सार्थवाहीने आते हुए धन्य सार्थवाह को देखा भी परन्तु उसने उस का आदर नहीं किया उसका स्वागत नहीं किया. मधुर बचनों से उसका सत्कार नहीं किया विविध वस्तुओंके समर्पण से उसने उसका सन्मान नहीं किया। वह उसके साथ पाइने घर त२५ भापत नेयो. (पासित्ता) बने (आसणाओ अब्भुढेइ अब्भुट्टित्ता कंठा कंठियं अवयासिय वाहप्पमोक्रवणं करेंति) तेम्म मा પિોતપોતાની જગ્યાઓથી ઊભા થયા અને ઊભા થઈને એક બીજાના ગળાથી પ્રેમ, પૂર્વક ભેટ્યા. ધન્ય સાર્થવાહને બધા માણસે મળ્યા. અને તેનું આલિંગન કર્યું ઘણા દિવસ પછી ધન્ય સાર્થવાહને જે અને મિલન થયું એટલે બધાની આંખોમાં इषना मासुमा १२सका सायां. (तएण से धण्णे सत्यवाहे जेणेव भदा भारिया, तेणेव उवागच्छइ) त्या२ ५छी घय सवाई न्यो भद्रा मार्या हती त्यां गया. (तएण सा भद्दा धण सत्यवाहं एज्जमाण पासइ, पासित्ता णो आढाइ, नोसम्माणेइ, णो अम्भुटेइ, नो सरीरकुसल पुच्छइ ) द्रा सार्थवाडी से धन्य साथ-साथ इन सावता या ५५ तेणे तेभने। આદર કર્યો નહિ, તેમનું સ્વાગત કર્યું નહિ, મધુર વાણુ વડે તેમને સત્કાર્યા નહિ,
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧