Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ. २. धन्यस्य विजयेन सहहडिबन्धनादिकम्
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जाव जलते' = यावज्जवलति = यावत् - मादुष्प्रभातायां रजन्यां = प्रभातसमये दिनकरेज्वलति सूर्योदये सति पुनर्विपुलमशनं ४ यावत् - उपस्कृत्य पान्यकाय दासाय भोजनपिटकं ददाति स चारकशालायां गत्वा धन्यस्य सार्थ - वाहस्य भोजनपात्रे ' परिवेसेइ' परिवेषयति-निदधाति । ततः खलु स धन्यः सार्थवाही विजयस्य तस्करस्प तस्माद् विपुलाद् अशनपानखाद्यस्वाद्यात् संविभागं करोति, स्वयं च भुङ्क्ते । ततः खलु स धन्यः सार्थवाहः पान्थकं दासवेढं 'बिसज्जेइ' विमर्जयति = गृहगमनायाऽऽदिशति । ततः खलु स पान्थको भोजनपिटक गहीत्वा 'चारगाओ' चारकात् = कारागारात् प्रतिनिष्क्रा मति, प्रतिनिष्क्रम्य राजगृहं नगरं मध्यमध्येन यत्रैव स्वकं गृहं यत्रैव भद्रा चोखे हुए और परमशुचीभूत हो कर उसी अपने स्थान पर आ गये। (तरणं सा भद्दा कल्लं जाव जलते विउलं असणं ४ जाव परिवेसे ) दूसरे दिन जब प्रातःकाल हुआ और सूर्य प्रकाशित हो चुका तब उस भद्राने अशनादि रूप चतुर्विध आहार को विपुलमात्रा में बनाकर उसे भोजन के डिब्बे में रख पांथकदास चेटक के हाथ धन्यसार्थवाह के पास कारागार में भेजापांथक दासचेटकने पहिलेकी ही तरह होकर उसे थाली में भोजन के लिये परोसा - परोस कर उसने सेठ के दोनों हाथों को धुलाया - (तपणं से धणे सत्थवाहे विजयस्स तकरम्म तओ विउलाओ असण४ संविभागं करेइ) बाद में उस धन्यसार्थवाहने विजय चौर के लिये उस अपने चार प्रकार के आहार में से विभाग कर दिये (तपणं से घण्णे सत्यवाहे पंथगं दास चेयं विसज्जेइ) धन्य सार्थवाहने बाद में उस पांधक दास चेटक को वहां से वापिस कर दिया। (तएण से पंथए भोयणपिडगं गहाय चारगाओ ४ जाव परिवेसेइ ) जीन्न हिवसे सवार થયું અને સૂર્ય ઉડ્ડય પામ્યા ત્યારે ભદ્રા ભાર્યાએ પુષ્કળ પ્રમાણમાં અશન વગેરે ચાર જાતના આહાર બનાવી તે એક સ્વચ્છ ડબામાં મૂકીને પાંથકદાસ ચેટકને જેલમાં ધન્ય સાવિાહની પાસે પહોંચાડવા આજ્ઞા કરી. પહેલાંની જેમ જ પાંથક દાસ ચેટકે ત્યાં જઈને થાળીમાં જમવાનુ चीरस्यु पीरसीने तेथे शेठना मने हाथ धोवडाव्या. (तएण से घण्णे सत्यवाहे विजयस्स तक्करस्स तओ विउलाओ असण ४ संविभाग करेइ) त्यार पछी ધન્ય સાવાહે વિજય ચોરને માટે ચાર જાતના આહારમાંથી ભાગ કરી આપ્યું. (तएण से धणे सत्थवाहे पंथगं दासचेडगं विसज्जेइ) त्यार पछी धन्य સા વાહે પાંથક દાસ ચેટકને ઘેર પાછા વળ્યા fusi गहाय चारगाओ पडिनिक्खमइ) पांथ
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
(तरण से पंथए भोषणहास थेट लोटनना उण्णाने