Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवषिणी टोका अ. २ म. ९ देवदत्त वर्णनम्
६२९ एवजयो नाम तस्करः यावद ग्रन इवामिषभक्षी बालघातको बालमारकोऽस्ति तत्तस्मात्का णात् नो खलु देवानुप्रियाः ! एतस्य कोऽपि राजा वा राजपुत्री वा राजामात्यो वा 'अवरज्झइ' अपराध्यतिन कोऽप्यन्य एनं पीडयतीत्यर्थः. किन्तु 'एत्थ? अत्रार्थ-एतद्विषये 'अप्पणो' आत्मनः= निजस्य ‘सयाई कम्माई" स्वकानि कर्माणि-स्वकृतान्येव कर्माणि 'अवरज्झति' अपराध्यन्ति-एनं पीडयन्ति, 'उकटु' इति प्रोच्य यत्रव चारगसाला' एवं वयंति) राजगृह नगर में आकरके वहां के श्रृंगाटक, त्रिक चतुष्क चत्वर और महापथ इन सब मार्गों में उन्होंने उस विजय चोर को कोडों से बेतों से चिकने किये हुए कोडों--से बार बार और भी बुरी तरह पीटते हुए उसके ऊपर भस्म धूली और तृण आदि रूप कडा करकट बार २ डालते हुए फिर इस प्रकार जोर जोर से घोषण की-(एएणं देवाणुपिया विजए नामं तक्करे जाव गिद्धे विव आमिसभकरवी बालघायए बालमारए) हे देवानुप्रियों! यह विजय नामका चोर है। यह गृद्ध पक्षी की तरह आमिष (मांस) का भक्षी है बाल घातक है और बाल मारक है। (तं नो खलु देवानुप्पिया! एयस्स केइ राया वा रायपुरिसे वा रायमच्चे वा अवरज्झइ) सो हे देवानुपियों! इस विषय में इनका न कोई राजा अपराधी है न राजपुत्र अपराधी है और न राजा का प्रधान अपराधी है। (एयम अप्पणो सयाई कम्मरई अपर झंति) किन्तु इसके निज कृत कण ही अपराधी बने हुए हैं। (तिकडु) ऐसा कहकर (जेणामेव चारगसाला तेणामेव उवागच्छंति) वे શૃંગાટક, ત્રિક, ચતુષ્ક ચત્ર અને મહાપથ આ બધા માર્ગો ઉપર કેરડા, વેતે અને ચીકણું કરાએલા કોરડાઓથી સખત રીતે વિજયેરને મારતાં અને વારંવાર તેના ઉપર રાખ, માટી અને કચરે વગેરે નાખતાં રક્ષકાએ મોટેથી ઘોષણા (ઢઢેરો) ४१ (एसणु देवाणुप्पिया विजए नाम तक्करे जाव गिद्ध विष आमिम भक्खी बालघायए बालमारए) हेवानुप्रियो ! 20 विन्य नाभे यो२ छ. ગીધની જેમ આ માંસ ખાનાર છે, બાળ ઘાતી છે અને બાળ હત્યારો છે. (तनो खलु देवाणुप्पिया! एयरस केइ राया वा रायपुत्त वा रायमच्चे वा अवरज्झइ) सटसे हवानुप्रियो ! मा विषे ऽपि शत शत अपराधी નથી, રાજપુત્ર અપરાધી નથી, તેમજ રાજાના પ્રધાન પણ અપરાધી નથી. (एयमहे अप्पणो सयाई कम्मई अवरज्झति) ५ मरी शत सेना पोताना भी मेने अपराधी समित ४२ छे. (त्तिकक) माम हीन (जेणामेव
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧