Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथागसूत्रे गणिकागृहाणि 'तदारट्ठाणाणि' तदद्वारस्थानानि-गणिकागृहद्वाराणोत्यर्थः, 'तकरहाणाणि य' तस्करस्थानानि च-चोरनिवासस्थानानि, 'सिंघाडगाणि' श्रृङ्गाटकानि श्रृङ्गाटकाकृतित्रिकोणस्थानानि, तियाणि' त्रिकाणि मार्गत्रयसंमी लनस्थानानि, 'चउक्काणि' चतुष्काणि-चतुष्कोणस्थानानि, चचराणि चत्वराणि3 चतुष्पथरूपाणि. 'नागघराणि' नागगृहाणि भूयघराणि' भूतगृहाणि 'जक्रखदे. उलानि' यक्षदेवकुलानि= यक्षायतनानि 'सभाणि' सभाः 'पवाणि' प्रपा:पानीयशाला 'पणियसालानि' पणितशालानि-क्रयविक्रयस्थानानि 'मुन्नघराणि' शून्यगृहाणि 'आभोएमाणे२' आभोगयन२-सोपयोग प्रेक्षमाणः 'मग्गमाणे' मार्यमाण:-अन्विष्यन् । 'गवेसमाणे' गवेपमाणः, सूक्ष्मरीत्या विलोकमान:-बहुजनस्य 'छिद्देसु' छिद्रेषु स्खलनारूपेषु 'विसमेसु' विषमेषु-रोगाद्यवस्था. वेश्याओं के गृहों को (तदारदाराणि) उनके दरवाजों को (तक्करहाणाणि) चोरों के निवासस्थानों को (सिंघाडगाणि) श्रृंगाटक जैसे त्रिकोण वाले स्थानों को (तियाणि) तीन मार्ग जहां मिले हों ऐसे स्थानों को (चउक्काणि) चतुष्कोण वाले स्थानों को (चच्चराणि) चतुष्पथ रूप स्थानों को (नागघराणि) नागगृहों को, (भूयघराणि) भूतगृहों को, (जक्खदेउलानि) यक्ष्य के देवलों को (समाणि) सभाओं को (पवाणि) व्याऊओं को, (पणियसालाणि) क्रयविक्रय के स्थानों को (सुन्नघराणि) शुन्य घरों का (आभोएमाणे२) उपयोग देकर वारवार देखता था। (मग्गमाणे) उन्हें बार२ तलाशता। (गवेसमाणे) सूक्ष्मदृष्टि से उन की गवेषणा करता था (बहुजणस्स छिदेसु य) जब कोई किसी प्रकार के कष्ट में होता था (विसमेसु) रोगादि अवस्था संपन्न वेश्यामानां धरोने, (तद्दारदाराणि) त वेश्या-याना ४२वाजमाने, (तकरट्ठाणाणि) याना मामाने (सिंगाडगाणि) श्रृ॥४-मेटले २२ता लेप था डाय तेवा स्थानाने, (चउक्काणि) या स्थानाने (चच्चराणि) या२ २२तामे लेप थता डाय तेका स्थानाने, (नागघराणि) anti डाने, (भूयघराणि) भूतियां धराने, (जक्ख देउलानि) याना हेवालयाने (सभाणि) समासाने (पवाणि) परमाने, (पणिय सालाणिज्य बियना स्थानाने, (सुन्नघराणि) urel ५६ २७॥ घशेने, (आभोएमाणे) भहत्य मापाने पारे घडले नेते तो (मग्गमाणे) ते स्थानाने वारंवार तपासती २९ तो तो. (गवेसमाणे) सूक्ष्म दृष्टिथी तभने तो रडतो तो. (बहुजणस्स छिद्देसु य ) न्यारे भास आ४ पY andu मा पाsतो रहे छे, (विसमेसु) शेप पोरेथा भुत रहेतो,
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧