Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे संलेखनया आत्मानं जोपयित्वा षष्टिं भक्तानि अनशनेन छेदयित्वा आलो. चितप्रतिक्रान्तः उद्धृतशल्यः समाधिपाप्तः कालमासे कालं कृत्वा उर्ध्वं चन्द्रमः सूर्यग्रहगणनक्षत्रतारारूपाणां बहूनि योजनानि, बहूनि योजनशतानि बहूनि योजन सहस्राणि, बहूनि योजनशतसहस्राणि, बीर्योजनकोटीः, वीर्योजनकोटिकोटीः, उर्ध्वं दूरम् उत्पत्य, सौधर्मेशानसनत्कुमार माहेन्द्रब्रह्मलोक लान्तकमहाशुक सहस्रारानतमाणताऽऽरणाच्युतान् त्रीणि च अष्टादशोत्तराणि पूर्व दिशा की तरफ मुख करके पद्मासन से विराजमान हो गये। वहां पच महाव्रतों का जिन्होंने स्वयं उच्चारण किया ( बारसवासाई सामण्ण परियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए छेदेना आलोइयपडिक्कंते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते ) तथा १२, वर्ष तक श्रामण्य पर्याय का पालन कर १ मास की संलेखना से अपने आपको कृश कर साठ भक्तो का अनशन द्वारा छेदकर, आलोचित प्रतिक्रान्त होकर और जो मायादि शल्यों को दूर कर संकल्प विकल्पों से वर्जित हुए अंत में और ( कालमासे कालं किच्चा ) जो कालमास में काल धर्म को प्राप्त हो गये हैं । इस तरह मृत्यु के वश होकर वे ( उड्ड चंदिमसूर गहगणणक्खत्ततारारूवाणं वहूई जोयणसयाइ बहूई जोयणसय सहस्सा बहूई जोयणकोडीओ बहूइ जोयणकोडाकोडीओ उडे दूरं उप्परता सोहम्मीसाणसणं कुमारमा हिंद बंभलोयलंतगमहासुक्क सहस्साराणयपाणयारणच्चुए तिणिय अट्ठारसुत्तरे गेवेज्ज - विरान्मान था गया. त्यां पयव्रतानु तेभागे लते अभ्यारण यु. ( बारसवासाई सामण परियागं पाउणत्ता मासियाए संलेहणाए अप्पा सित्ता सहि भत्त' प्रणसणाए छेदेत्ता आलोइयपडिक्कते उद्धियसल्ले समाहिपत्ते ) બાર વર્ષના શ્રામણ્ય પર્યાયનું પાલન કર્યાં બાદ એક મહિનાની સલેખનાથી પેાતાને દૂબળા બનાવીને સાઈઠ ભકતાને અનશન વડે છેદીને, આલેાચિત પ્રતિક્રાન્ત થઈને अने भाया वगेरे शस्याने दूर उरीने सउदय- विदयाथी रहित थाने मते ( कालमासे काल किच्चा ) अण भासभा अण धर्मने चाभ्या छे. या प्रमाणे मृत्युवश थयेला भुनिरान भेधङ्कुभार ( उड्ड चंदिमसूर गहगणणवश्व त्तताराख्वाणं बहूई जोयणसयाइ बहूई जोयणसय सहस्सा इं बहूई जोयणकोडीओ बहूई जोयणको डाकोडीओ उड्ड दूरं उप्पइत्ता सोहम्मीसाणसण कुमार माहिंद बंभलोयलंतगम हा सुक्क सहस्साराणयपाणयारणच्चुए
तिणिय
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શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧