Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ. १ सूत्र. ४९ मेघमुने: संलेखना निरूपणम्
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गतः इहगतामति कृत्वा बंदत नमस्यात वंदित्वा नमस्यित्वा एवमवदत् पूर्वमपि च खलु मया श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके सर्वः प्राणातिपातः प्रत्याख्पातः, मृषावाद: अदत्तादानं, मैथुनं परिग्रहः, क्रोधो, मानो, माया, लोभः, राग, द्वेषः, कलहोपाख्यानं, परपरिवादः अरतिरतिर्मायामृषा, मिथ्यादर्शनशल्यं प्रत्याख्यातम्, इदानीमपि खलु श्रहं तस्यैवान्तिके सर्व प्राणातिपातं प्रत्याख्यामि यावत् मिथ्यादर्शनशल्यं प्रत्याख्यामि, सर्व हुआ वंदना करता हूँ-वहां विराजमान वे भगवान् यहां पर स्थित हुए मुझे देखें इस प्रकार बोलकर उन्होंने उन्हें वंदना किया नमस्कार किया । ( वंदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी) वंदना नमस्कार कर फिर वे इस प्रकार कहने लगे-पुवि पि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए,, मुसावाए अदिन्नादाणे मेहुणे परिग्गहे कोहे माणे माया लोहे पेज्जे दोसे कलहे अब्भक्खाणे पेसुन्ने परिपरिवाए अरहरइ माया मोसे मिच्छादंसणसल्ले पच्चक्खाए) पहिले ही मैं श्रमण भगवान् महावीर के पास सर्व प्राणातिपात प्रत्याख्यान कर चुका हूँ, मृषावाद, अदत्तादान मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष कलह, अभ्याख्यान, पैशून्य परपरिवाद, अरतिरति माया, मृषा मिथ्यादर्शन शल्य इन सबका भी प्रत्याख्यान कर चुका हूँ। (इयाणि पिणं अहं तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव मिच्छादंसण सल्ल पच्चक्खामि, सव्वं असणपाणखाइमं साइमं चउव्विहं पि आहारं पच्चक्रखामि ) इस समय भी मैं उन्हीं के पास सर्व प्राणातिपात का यावत् मिथ्यादर्शन शल्य का प्रत्यातेमागे तेभने वहन अने नमस्र अर्था. (वदित्ता नर्मसित्ता एवं वयासी) वहन અને નમસ્કાર કરીને તેએ આ પ્રમાણે કહેવા લાગ્યા— या - (पुवि पि य णं मए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए सव्वे पाणाइवाए पच्चक्खाए मुसावाए अदिनादाणे मेहुणे परिग्गकोहे माणे माया लोहे पेज्जे दोसे कलहे अभक्खाणे पेसुन्ने परपरिवाए अरइरइमायामोसे मिच्छादंसण सल्ले पच्चक्रखाये) में पडेलां ભગવાન મહાવીરની પાસે સ॰પ્રાણાતિપાત પ્રત્યાખ્યાન કર્યુ છે. મૃષાવાદ, અદત્તાદાન, मैथुन, परिग्रह, अध भान, भाया, बोल, प्रेम, द्वेष, उत्साह, सल्याच्यान, चैशून्य, परपरिवाह, मरतिरति, भाया, भूषा, मिथ्यादर्शन भने शल्य या मधानुं पशु में प्रत्याभ्यान यु" छे. (इयार्णिपि णं अह तस्सेव अंतिए सव्वं पाणाइवायं पच्चक्खामि जाव मिच्छादंसणसल्लं पच्चक्खामि सव्वं असणपाणखाइम साइमं चउन्विहं पि आहार, पच्चक्खामि ) अत्यारे पशु हु तेमनी पासे सर्व प्रशातिपातनुं यावत्
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
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