Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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___ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे ऋतुषु 'समइकंतेमु' समतिक्रान्तेषु-व्यतीतेषु, ग्रीष्मकालसमये-ग्रीष्मऋतुसमये, जेष्ठ मूले मासे-ज्येष्ठमासे, पायवसंघ पसमुटिएणं' पादपसंघर्षसमुत्थितेनवंशा रण्यादि संघर्षणजनितेन, 'जाव संवटिए' यावत् संवर्तितेषु अत्र यावच्छ. ब्देन-शुष्कतृणपत्रकचवरमारुतस योगदीपितेन महाभयंकरेण हुतवहेन वनदवज्वालासंप्रदीप्तेषु वनेषु धमन्याप्तासु दिशासु. महाबातवेगेन संघट्टितेषु छिन्नमालेषु, आपतत्सु, सकोटरक्षेषु कोटराभ्यन्तरे दह्यमानेषु० वनपदेशेषु, भृङ्गारिका दीनन्दितरवेषु वृक्षेषु, यत्र गिरिवरेषु पक्षिसंघाः पिपासावशेन शिथिलीकृतपक्षाः बहिष्कृतजिवातालुकाः, व्यावृतमुखा भवन्ति, तत्रैत्यादि उऊसु) पांच -प्राट्, वर्षारात्र शरद्, हेमन्त, और वसन्त ये ऋतुएँ (समइक्कतेसु) व्यतीत हो चुकी थीं और (गिम्हकालसमयंसि) गीष्मकाल का समय आ चुका था और जब (जेट्टामूले मासे) जेठ के महीने में (पायवसंघससमुट्ठिएणं जाव संवटिएसु मियपसुपक्वि. सरीसवेसु दिसोदिसं विपलायमाणेसु) वृक्षादिक के परस्पर संघर्षण से पैदा हुई अर्थात् पवन से कंपित हुए वंश आदि का परस्पर घर्षण से उत्पन्न हुई । यावत् ॥ शब्द से शुष्क पत्र तृण आदि रूप कूडे में पवन के संयोग से दीपित हुई, ऐसी महा विकराल जंगल की अग्नि से वन प्रज्वलित हो रहा था तथा दिशाएँ धम से आच्छादित हो रही थीं एवं कोटरयुक्त--पोले वृक्ष वात के वेग से संघटित होकर आग लगने से नीचे जमीन पर गिर गये थे तथा उनमें लगी--अग्नि ज्वाला जब शान्त हो गई थी। तथा वन के वृक्ष भृगारिकों के दीन आनन्द शब्दों से युक्त हो रहे थे। तथा पर्वतों के ऊपर पिपासा के वश से आकुलित हुआ पक्षी शिथिल पंखवाला प्रकटित तालु जिता वाला तथा श२६, भन्त भने वसन्त ऋतु। (समइक्कतेस ) मे मे रीने ५सा२ ON भने (गिम्हकालसमयंसि) Sunia भोसम मावी ते मते (जेहाम्ले मासे ) ४ महिनामा (पायवसंघससमुहिएणं जाव संबटिएसु मियपसुपक्खिसरिसवेसु दिसोदिसि विप्पलायमाणेसु) पवनथी पित थये। વાંસ વગેરેના પરસ્પર ઘર્ષણથી ઉદ્ભવેલા, “યાવત્ ” શબ્દથી શુષ્ક તૃત્ર ઘાસ વગેરેમાં પવનના સહયોગથી પ્રજવલિત થયેલા વનના મહા વિકરાળ અગ્નિથી જ્યારે જંગલ સળગી ઉઠયું હતું તેમજ ચોમેર દિશાઓ ધુમાડાથી ઢંકાઈ ગઈ હતી, પિલાં વૃક્ષો પવનના સંઘર્ષણથી સળગીને જમીનદોસ્ત થઈ ગયાં હતાં. અને ધીમે ધીમે તેમાં સળગતી અગ્નિજવાળાઓ શાંત થઈ ગઈ હતી, જંગલના વૃક્ષો ભંગારિકેના દીનકંદનથી શબ્દ યુકત થઈ રહ્યા હતા, પર્વતેના ઉપર તરસ્યાં અને વ્યાકુળ થયેલાં
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧