Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे 'पेार्ट' उदरे 'कायंसि' काये-शरीरे, एतेषु सर्वेषु संघटादिकं विज्ञयम्, अप्येके 'ओलंडेति' उल्लंघयन्ति एकवारं, अप्येके पॉलंडेति' प्रोल्लंघर्यान्त वारंवारं, अप्ये के पायरयरेणुगुंडियं' पादरजोरेणुगुण्ठितंचरणधूलिपुञ्जन गुण्ठितम् संलिप्नं कुर्वन्ति एवं महालियं च णं रयणि' एवं महत्यां च खलु रजन्यां मेघकुमारः ‘णो संचाएइ' नो शन्कोति 'वणमवि' क्षणमपि 'अच्छि' अक्षिनेत्रं 'निमीलित्तए' निमीलितु-संयोजयितुम् । ततः खलु तस्य मेघकुमारस्य 'अयमेयारूवे' अयमेतद्रूपः 'अज्झथिए' आध्यात्मिकः आत्मनि जायमानः'जाव' यावद्शब्देन 'चिंतिए पत्थिए कप्पिए मोगए संकप्पे' इत्येतेषां संग्रहःचिन्तितः प्रार्थितः कल्पितः, मनोगतः संकल्पः, तत्र चिन्तितः एवं करणरूपेण और शरीर में संघटन हो जाता (अप्पेगइया ओलंडेंति) कितनेक उसके ऊपर से होकर निकल जाते (पोलेंडे ति) कितनेक बार बार उसके उपर से निकल जाते। (अप्पेगइया पायरयरेणुगंडियं करेंति) कितनेक अपने पैरों की धूलि से उसे धूसरित कर देते। (एवं महालियं चणं रयणि मेहे कुमारे णो संचाएइ खणमवि अच्छि निमीलित्तए) इस प्रकार वह कुमार एक क्षण भी उस महती रात्रि में निद्राधीन नहीं बन सका (अएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था) तब उस मेव. कुमारको इस प्रकार का यह आध्यात्मिक, चिंतित, पार्थित, कल्पित, मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ। आध्यात्मिक शब्द का अर्थ आत्मा में हुआ ऐसा है। चिन्तित आदि जो ये संकल्प के और अन्य विशेषण यहां टीकाकारने लिखे वे मूत्र में यावत् शब्द से गृहीत किये हुए हैं। मैं इस प्रकार करूगा' इस तरह जो-ऐसा करूं इस रूप से हृदय में स्थापित किया जाता है वह गइया ओलंडेंति) 32॥४ तेने साजाने नीजी anal. ( पोलंडेंति) al वारंवार तेने साजान ५२ ५४ने ५सा२ थ६ ता ता. (अप्पेगइया पायरयरेणुगंडियं करेंति) 23 साधु तेने पोताना पानी धूमथी मसिन ४२ता हुal. ( एवं महालियं च णं रयणि मेहे कुमारे णो संचाएइ खणमवि अच्छि निमीलित्तए) २ प्रमाणे भेषभा२ मे क्षण ५ ते खinी रात्रिमा निद्रा१२ नहि ५ शया. (तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स अयमेयारूये अज्झत्थिर जाव समुपज्जित्था त्या२ पछी भेधभारने म प्रभारी साध्यात्मि, ચિંતિત, પ્રાર્થિત, કલ્પિત અને મનોગત સંકલ્પ (વિચાર) ઉદ્ભવ્યું કે—(આધ્યાઆત્મિક શબ્દનો અર્થ આત્મામાં ઉત્પન્ન થયેલ એ થાય છે. ચિંતિત વગેરે જે આ સંકલ્પને માટે બીજા વિશેષણો અહીં ટીકાકારે ટાંકયાં છે તે સૂત્રમાં “યાવ” શબ્દ દ્વારા ગૃહીત થયાં છે. “હું આ પ્રમાણે કરીશ!' આ રીતે જે એમ કરુંના
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧