Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे निर्थाणं-कर्मतो बहिर्भवनं, तस्यमार्गः=पुनरावृत्या आमनरहितत्वात् यत्र गत्या न कदाचिदपि पुनः संसारे समायाताति भावः । 'निब्याणमग्गे निर्वाणमार्गःनिवाण-निराबाधमुखं समस्तकर्म कृतविकाररहितत्वात, तस्य मार्गः 'सव्व दुक्खपहीणमग्गे' सर्व दुःखप्रहीणमार्गः-सर्वाणि-शारीरिकमानसिकानिच दुःखानि इति सर्वदुःखानि, तेभ्यः प्रहीण:-प्रक्षीणः चासौमार्गः सकलक्लेशक्ष यकारकत्वात् तथा, 'अहीवएगंतदिट्टीए' अहिरिव एकान्तदृष्टिकम् आमिष ग्रहणं प्रति अहिरिवं सर्प इव चारित्रपालनं प्रति, एकान्ता एकाग्रा दृष्टि बुद्धि यस्मिन् वचने तत्, एकाग्रतायाः दुष्करत्वात् तया सादृश्यमिति भावः। तथा 'खुरो इव एगंतधाराए' क्षुर इव एकान्तधारकं, क्षुरम्य शस्त्रविशेषस्य च एकान्ता अद्वितीया धारा यस्य तत् अपवाद क्रिया वर्जितकधारमित्यर्थः, 'लोहमया इव जबा चावेयब्बा' लोहमया इव यधाचयितव्याः लोहमय धना से होती है इसलिये जो-मुक्ति का मार्ग रूप है, जो (निजाण मग्गे) जिवके लिये कार्य से अलग होने रूप निर्णय का मार्ग है (नियामग्गे) निवाण का मार्ग है-निराबाध सुख का नाम निर्वाण है क्यों कि यह सुख कर्मकृत विकार से रहित होता है-ऐसे (सव्वदक्खपहीणमग्गे) सकल कर्मजन्य क्लेशों का क्षयकारक होने के कारण यह शारीरिक एवं मानसिक-दुःखों से रहित एक अद्वितीय मार्गरूप है । (अहीवएगंत दिट्टीए) जैसे सपै की दृष्टि आमिषग्रहणकी तरफ एकाग्ररूपसे होती है उसी तरह चारित्रपालन के प्रति जिसमें एकान्तरूप दृष्टि है-निग्रन्थ प्रवचन किसी भी अवस्थामें चारित्र अंगिकार करनेवाले को यह उपदेश नही देता है कि तुम उसचारित्र में शिथिलता प्रदर्शित करो । (खुरोईब एगंतधाराए) जैसे क्षुरा की धारा एकान्तरूपसे तीक्ष्ण रहा करती है-उसी तरह भाग छ, रे (निज्जाणमग्गे) अपने भाटे यथा ९ था ३५ निय-भा छे. (निव्वाणमगे) निर्वाशुनो भा छ, निरामा सुमनु नाम નિર્વાણ છે, કેમકે આ સુખ કમજન્ય વિકારથી રહિત હોય છે, એવા અવ્યાબાધ सुमना भा निथ अवयन छे. (सव्वदरखपहीणमग्गे) समस्त भજન્ય કલેશનું વિનાશક હોવાથી નિગ્રંથ પ્રવચન શારીરિક અને માનસિક દુઃખ विडीन से पूर्व भाग३५ छ. (अहिव एगंतदिट्टीए) म सापनी न०४२ માંસ ગ્રહણ કરવા તરફ ચૅટીને રહે છે, તેમ જ ચારિત્ર પાલન પ્રત્યે એકાન્તરૂપ દ્રષ્ટિ જે વ્યક્તિમાં છે,–નિગ્રંથ પ્રવચન કેઈ પણ સંજોગોમાં ચારિત્ર સ્વીકારનારાને AL S५२ नथी मापता 3 तमे यारित्र्यमा शैथिल्य मतावा. (खुरो इव एगंत धाराए) म छरानी पार सन्त३५ तीक्ष्णू डोय छ, ते ४ प्रमाणे भाम पy
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧