Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ.१ सू. २४ मेघकुमारपालनादिवर्णनम् ३०५ 'जणकलकलेइवा' जनकलकला-जनानामव्यक्तवर्णात्मको ध्वनिः जनोमि:तरङ्ग इव मनुष्याणां समूहः 'जणुकलियाइ वा जनोत्कलिका-जनानाम् अल्प: सम्हः 'जणसन्निवाइवा' जनसन्निपातो वा अपरापरस्थानेभ्यः समागत्य एकत्र मीलनं, तत्र बहजनोऽन्योन्यं परस्परम् एवं वक्ष्यमाणस्वरूपेण 'अक्खाइ' आख्याति आकस्मिकभगवदागमनजनितहर्षातिशयेन सगद्गदकण्ठतया सामान्यतोवदतीत्यर्थः। भासइ' भाषते व्यक्तवचनैवेदतीत्यर्थः । 'पन्नवेई' प्रज्ञापयति=भगवदागमनरूपमर्थ प्रतिबोधयति । 'परूवेई' प्ररूपयति-भगवन्नामगोत्र स्वरूपादिकं बोधयन् कथयतीत्यर्थः । किंकथयतीत्याह-'एवं खलु' इत्यादि। एवं का संग्रह किया गया है-(जणवूहेइवा) अनेक जनों का व्यूह (जणबोलेइवा) अनेक जनों के बोल (जणकलकलेइवा) अनेक जनों का कलकलरव उस समय उन पूर्वोक्त श्रृंगाटक आदि मार्गों में प्रकट हुआ। उस समय (जणुम्मीदवा) मनुष्यों का जमघह उन मार्गों में तरङ्ग की तरह इधर उधर अतराता हुआ दृष्टि पथ होने लगा। (जणुक्कलियाइवा) कहीं२ मनुष्यों का समूह अधिक भी नही था-अल्प था (जणसंनिवाएइवा) कहीं२ से आकर जनता एकट्ठी हो गई थी। ये सब के सब मनुष्य परस्पर में पहिले आकस्मिक भगवान् के आगमन से जनित हर्षातिशय के वश से गदगद कंड होकर (अक्खाइ) स्पष्ट रूप से एक दूसरे से कहने लगे(भासइ) बाद में व्यक्त वचनों द्वारा कहने लगे (पन्नवइ) बाद भगवान् पधारे हैं ऐसा उच्चारण करने लगे। (परूवेइ) भगवान् का अमुक नाम है अमुक गौत्र है उनका इस प्रकार का स्वरूप आदि है ऐसा समझ कर सबको समझाने लगे। कहने लगे-हे देवानुपियों ? श्रमण भगवान् महावीर जो भाणसानो समूड, (जगबोलेइवा) ! भाशुसानो भवा४, (जणकलकले इवा) ઘણું માણસે શેરબર તે વખતે પૂર્વોક્ત શૃંગાટક વગેરે રસ્તામાં શરૂ થયું. તે સમયે (जणुम्मीइवा) भाणुसे ते भागभा रियामान॥ भाग यानी म भामतेम rdu हेमाता ता. (जणुक्कलियाईवा) 315 या भाणुसोना समूड माछा प्रभाभा तi. (जणसन्निवाएइं वा) | आई थाने ०५७।२. ॥मयी त मे४४ થઈ ગઈ હતી. આ બધા માણસો પહેલાં તે ભગવાનના આકસ્મિક આગમનથી હર્ષાति२४ने १२ ४ (अक्खाई) १२५०८३पे मे४ीने का सा-या, (भासइ) पछी २५८ क्यनाथी वा साया, (पन्नवई) थोडी क्षणे पछी 'लगवान पथार्या छे, मेम ४ा साया, (परूवइ) भगवाननु भभु नाम छ, भभु गौत्र छ, તેમનું સ્વરૂપ અમુક પ્રકારનું છે, આમ જાણીને બધાને સમજાવવા લાગ્યા. તેઓ
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧