Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका अ.१सू.२७ मेधकुमारस्य भगवदर्शनादिनिरूपणम् ३३३ भारसंभृतगात्रा, 'परसुनियनचंपकलया' परशुनिकत्तेव चम्पकलता- परशुना छिन्ना चम्पकल तेव निव्वतमहिमाइंदलही' नित्तमहेवेन्द्रयष्टिः, निवृत्तो महः उत्सवो यस्या सा इन्द्रष्टिः-उत्सवस्तम्भ इव, 'विमुक्कसंधिबंधणा' चिमुक्त-सन्धिवन्धना, विमुक्तं लथीभूत सन्धिबन्धन करचरणाद्यवयवसंधानं यस्याः सा तथा, अतएव 'कोहिमतलंसि' कुहिमतले मणिरत्नजटित भवनागणे, 'सब्बंगेहि' सर्वाङ्ग: "धसत्ति' धसइति शब्देन 'पडिया' पतिता। ततः स्वलु'सा धारिणी देवो 'ससंभमोवत्तियाए' ससंभ्रममपतितया, अकस्मात 'कि जात'मिति सभयम् अपवर्तितया=क्षिप्तया, 'तुरियं' त्वरितं शीधं कंचणभि, गारमुह विणिग्गयसीयलपिमलधाराए' काश्चनभृङ्गार मुख विनिर्गत शीतलजलविमल धारया-काश्चनभृङ्गार:-सुवर्णमयभृङ्गारः 'झारी' इति प्रसिद्धः, तन्मुखाद विनिर्गता=निःसृता शीतलजलम्य या निर्मलधारा अविछिन्न धारातया 'परिसिंचमाणा' विशेष वजनदार बन जाता था। (परमुनियत्ताचंपकलया) इसकी शारीरिक स्थिति कुछ ऐसी बन गई कि जैसी परशु से कटि हुई चम्पक लता हो जाती है। (निव्वत्त महिमबइंदलट्ठी) जिस प्रकार इन्द्रयष्टि उत्स वस्तंभ-उत्सव के समाप्त होने पर शोभा से विहीन हो जाता है उसी प्रकार यह भी प्रतीत दिखलाई देने लगी। (विमुक्क संधिबंधणा) संधिबन्धन शरीर भर के अवयव इसके ढीले पड गये। इस कारण यह कोटिमतलंसि सम्बंगेहि धसत्ति पडिया) मणिरत्न जटित भवनाङ्गण में ढीले हुए अंगों से एक दम धब से गिर पडी। (तएणं सा धारिणी देवी स. संभमोवत्तियाए तुरियं कंचणभिगारमुहविणिग्गयसीयलविमलजलधाराए परिसिंचमाणा) इसके बाद जब दासी जनोंने उसकी यह यह हालत देखी-तो वे बहुत जल्दी सुवर्ण की झारीमें शीतल जल भरकर ले आई। उस झारी के मुख से विनिर्गत वह शीतल विमल जल धारा त्यारे तेनु शरी२ पधारे मारे ७ तुडतुः (परसुनियत्तम्वचपकलया) हुडडीयी अपामेली यस्ता वी तेना शशेरनी हसत 25 5 ती. (निव्वत्त महिमन्च इंदलट्टी) म धन्द्रयष्टि गेटवे उत्सव स्तम. त्सव पूरे। थdi शमा 4 25 नय छ तेवीस ते ५४ हेमावा . (विमुक्कसंधिबंधणा) मामा शरीरन या म ढlai 5 या तेथी घारिणीवी (कोहिमतलंसि सव्वं गेहिं धसत्ति पडिया) भत्निी 3el मनना Minभi lei थन मे४भ ५५ ४0 ते 45 गया. (तएणं सा धारिणीदेवी ससंभमोवत्तियाए तुरियं कंचगभिंगारमुहपिणिग्गयसीयलविमलजलधारणपरिसिंचमाणा) ત્યારબાદ દાસીઓએ તેમની આ હાલત જોઈને જલદીથી સેનાની ઝારીમાં ઠંડુ પાણી ભરીને લાવી. અને તે ઝારીની શીતળ જલધારા તેના ઉપર છાંટવામાં
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧