Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे 'तालाव' इति भाषा प्रसिद्धः, 'रुक्ख' वृक्षाप्रतीतः, 'चेइय' चैत्यः स्मारक चिह्नविशेषः सभावृक्षो बा, "पव्यय' पर्वत: उज्जान' उद्यानम्, 'गिरिजत्ता' गिरियात्रा, एषां रुद्रादीनामुत्सवः किम् ? 'जओणं' यतः खलु बहव उग्रा यावद् एकस्यांदिशि एकाभिमुखा निर्गच्छन्ति । ततः खलु स कन्चुकि पुरुषः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य गहियागमणपवत्तिए' गृहीतागमनपत्तिका आगमननान्तज्ञः, मेघकुमारमेवमवदत्-नो खलु हे देवानुप्रिय। अद्य राज. गृहे नगरे इन्द्रमहोवा यावद् गिरियात्रा वा, यत् खलु एते उग्रा यावद् एकस्यां दिशि एकाभिमुखा निर्गच्छन्ति, एवं खलु हे देवानुप्रिय ! श्रमणो है कहो किसका उत्सव है-क्या किसी नदी का, या जलाशय की, या किसी चैत्य वृक्ष का, या किसी के स्मारक का, पर्वत का, उद्यान का, या किसी गिरिका उत्सव है क्या ? (जओ णं बहवे उग्गा जाव एगदिसिएगामिमहा णिग्गच्छति) जो ये सब के सब उग्र आदि वंश वाले व्यक्ति एक ही तरफ एक लक्ष्य बांधकर चले जा रहे हैं। (तएणं से कंचुइ पुरि से समणस्स भगवओ महावीरस्स गहियागमणपवत्तिय मेहं कुमार एवं क्यासी) इस प्रकार मेघकुमार की बात सुनकर उस कंचुकी ने कि जिसे श्रवण भगवान् महावीर के आनेका वृत्तान्त पहिले से ज्ञात हो चुका था मेघकुमार से ऐसा कहा-(नो खलु देवाणुपिया ? अज्जं राय. गिहणयरे इंदमहेइवा जाव गिरिजनाइवा ) भो देवानुप्रिय ? आज राजगृह नगरमे इन्द्र महोत्सव आदि कुछ नहीं है और न कोई नदी से लेकर गिरिपर्यन्त कोइ उत्सव ही है (जन्नं एएउग्गा जाव एगदिसि एगा भिमुहा निगच्छति) फिर भी जो ये सब उग्र आदि वंश के जन एक કઈ યક્ષ યા ભૂતને ઉત્સવ છે. બતાવે કેને ઉત્સવ છે? શું કઈ નદી જળાશય, કેઈ ચૈત્ય વૃક્ષ, કેઈ સ્મારક, પર્વત ઉદ્યાન અથવા કઈ ગિરિને ઉત્સવ છે? ( ज आ णं बहवे उग्गाजाव एगदिसि एगाभिमुहा णिगच्छति) 3 20 सपा ઉગ્ર વગેરેના વંશવાળા વ્યક્તિઓ એક જ તરફ એક લક્ષ્ય રાખીને ચાલ્યા જાય छे. ( त एणं से कंचुइ पुरिसे समणम्स भगवओ महावीरस्स गहियागमण वत्तिए मेहंकुमारं एवं वयासी ) 241 शते भेघाभारनी वात समान ते युકીએ કે જેને શ્રમણ ભગવાન મહાવીરના પધારવાના સમાચાર પહેલેથી જ હતા तेणे भ ने धु-( नो खल देवाणुप्पिया ? अज्ज रायगिहनयरे इंद महेइवा जाव गिरिजत्ताइवा) हेवानुप्रिय ! २२४ नाभा मा छन्द्र મહેસવ વગેરે કંઈ નથી અથવા નદીથી માંડીને ગિરિ સુધીને કેઈ ઉત્સવ પણ નથી (जन्नं ए ए उग्गा जाव एगदिसि एगाभिमुहा निग्गच्छंति) छvi ५ करे
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧