Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे सहस्समालणीयं' अविः सहस्रमालणीयं-अर्चिषां विविधरत्नानां सहस्त्रैः मालणीय-'मालणीय' इति देशीयशब्दः शोभितमित्यर्थः, 'रूवगसहस्सकलियं' रूपक सहस्रकलितं नानाविधचित्ताकर्षक प्रशस्तरूपसहस्रर्युक्तम् 'भिसमाणं'भासमानं-रत्नकान्त्या 'भिन्भिसमाणं' विभासमान उत्कृष्ट नानावर्णपरमरत्नज्योतिषा देदीप्यमानम्, चक्खुल्लोयणलेम्स' चक्षोंचनलेश्य चक्षुभ्यां लोकने अवलोकने सति लेश्यं दर्शनीयत्वातिशयतः श्लेष्यं यत् तत्तथा, यत् पश्यतच्चक्षुद्वयं तत्र श्लिष्यतीच न कदाचिदपि विरमतीति भावः 'सुहफासं' सुखस्पर्श अतिचिक्कणत्वात् कोमलस्पर्श, 'सम्सिरीयरूव' सश्रीकरूपं श्रिया सह वर्तन्ते इति सश्रीकाणि रूपाणि यत्र तत्सश्रीकरूपं-अतिशयशोभासम्पन्ननानाचित्रयुक्तम् इत्यर्थः 'कंचणमणिरयणथूभियागं' काञ्चनमणिरत्नस्तूपिकं-काश्चनं शुद्धमुवणे, मणयः चन्द्रकान्तसूर्यकान्तादयः, रत्नानि कर्केतनादीनि तेषां निर्मितेत्यर्थः ते दीखता था। (अच्चिसहस्समालणीय) अनेक प्रकार के रत्नों की हजारो किरणों से यह शोभित था। (रूवगसहस्सकलिय) चित्ताकर्षक सुन्दर अनेक विध रूप सहस्त्र से यह युक्त था ।(मिसमाणं) रत्नों की कांति से प्रकाशित और (भिब्भिसमाणं) नाना वर्ण वाले परमोत्कृष्ट रत्नों की चमक से देदीप्यमान ऐसे इस महल को देखने वाले दर्शक जनों के लोचन उसे देखते२ अघातेनही। क्यों कि उसे देखते ही वे ऐसे बन जाते थे कि मानों उसमें चिपक से गये हैं यही बात मूत्रकारने (चक्खुल्लोयणलेस्स) पद द्वारा प्रदर्शित की है। (मुहफासं) इस का स्पर्श सुखकारी (सस्सिरीयरूव) और मनोहर था। रूप शब्द का अर्थचित्र भी होता है। इसमें जितने भी चित्र बने थे वे अतिशय शोभा संपन्न थे यह अर्थ भी सश्रीकरूप पद का हो सकता है। (कंचणमणिरयणथूमियागं) शुद्धसुवर्ण (२) यो साता तो (अच्चिसहस्तमालणीय) भने ५४५२ना २त्नान १२ ४ि२॥ द्वारा मा भउस शोलतो तो (रूवगसहस्स कलिय) वित्त सु४२ मने विधि३५ ससथी ते संपन्न हतो. (मिसमा) रत्नानी id द्वारा प्रशतो भने भिडिभसमाणं) मने ना उत्तम रत्नानी प्रमाथी अता ते भडसने नेता જોતાં જોનારાઓની આંખ તૃપ્ત થતી ન હતી. કેમકે તેને જોતાની સાથે જ તેઓ ongणे यांटा गया डायम दातात पात सूत्रा२ (चक्खुल्लोयलेस्स) ५६ द्वारा प्रशित ४0 छ. (मुहफास) मान। २५श सुमन, (सस्सिरिय) भने ३५ તે મને હર હતે. રૂપ શબ્દનો અર્થ ચિત્ર પણ થાય છે. આમાં જેટલાં ચિત્રો હતાં તે બધાં અત્યન્ત શોભા સંપન્ન હતાં આ અર્થ પણ “સશ્રીક' પદને થઈ શકે છે.
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧